Friday 7 August 2009

कल नाहिं पड़त जिस : मीराबाई

सखी मेरी नींद नसानी हो।

पिवको पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो।

सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।

बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो।

अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो।

अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो।

ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।

मीरा ब्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो।

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