Friday 31 July 2009

ख़ुदा का फ़रमान : इक़बाल

उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो

गर्माओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से
कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो

सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो

क्यों ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ में हायल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से हटा दो

मैं नाख़ुश-ओ-बेज़ार हूँ मरमर के सिलों से
मेरे लिये मिट्टी का हरम और बना दो

तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मशरिक़ को सिखा दो

मातृभाषा प्रेम पर दोहे : भारतेंदु हरिश्चंद्र

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।


अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।


उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय

निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।


निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय

लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।


इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग

तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।


और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात

निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।


तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय

यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।


विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।


भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात

विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।


सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय

उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।


साईं ने कहा है : भाग - 114

साईं ने कहा है, कि.....
"ये सब ईश्वर की लीला है,
वो ही पीर हरेंगे,
हम उत्सुक क्यो हो।"

Kashi Sai Image : Part - 2

Thursday 30 July 2009

वह अपनी नाथ दयालुता : भारतेंदु हरिश्चंद्र

वह अपनी नाथ दयालुता तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
वह जो कौल भक्तों से था किया तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

व जो गीध था गनिका व थी व जो व्याध था व मलाह था
इन्हें तुमने ऊंचों की गति दिया तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

जिन बानरों में न रूप था न तो गुन हि था न तो जात थी
उन्हें भाइयो का सा मानना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

खाना भील के वे जूठे फल, कहीं साग दास के घर पै चल
यूँही लाख किस्से कहूं मैं क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

कहो गोपियों से कहा था क्या, करो याद गीता की भी जरा
वानी वादा भक्त - उधार का तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

या तुम्हारा ही `हरिचंद´ है गो फसाद में जग के बंद है
है दास जन्मों का आपका तुम्हें याद हो कि न याद हो ।।


शक्ति और क्षमा : रामधारी सिंह "दिनकर"

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।

साईं ने कहा है : भाग - 113

साईं ने कहा है। कि.......
"मैं सभी का हूँ, सभी मेरे है।"

Wednesday 29 July 2009

लेकिन मन आज़ाद नहीं है : गोपालदास "नीरज"

तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।

सचमुच आज काट दी हमने
जंजीरें स्वदेश के तन की
बदल दिया इतिहास बदल दी
चाल समय की चाल पवन की

देख रहा है राम राज्य का
स्वप्न आज साकेत हमारा
खूनी कफन ओढ़ लेती ह
लाश मगर दशरथ के प्रण की

मानव तो हो गया आज
आज़ाद दासता बंधन से पर
मज़हब के पोथों से ईश्वर का जीवन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।

हम शोणित से सींच देश के
पतझर में बहार ले आए
खाद बना अपने तन की-
हमने नवयुग के फूल खिलाए


डाल डाल में हमने ही तो
अपनी बाहों का बल डाला
पात पात पर हमने ही तो
श्रम जल के मोती बिखराए

कैद कफस सय्यद सभी से
बुलबुल आज स्वतंत्र हमारी
ऋतुओं के बंधन से लेकिन अभी चमन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।
यद्यपि कर निर्माण रहे हम
एक नयी नगरी तारों में
सीमित किन्तु हमारी पूजा
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारों में

यद्यपि कहते आज कि हम सब
एक हमारा एक देश है
गूंज रहा है किन्तु घृणा का
तार बीन की झंकारों में


गंगा ज़मज़म के पानी में
घुली मिली ज़िन्दगी़ हमारी
मासूमों के गरम लहू से पर दामन आज़ाद
नहीं है ।
तन तो आज स्वतंत्रतापूर्ण हमारा लेकिन मन
आज़ाद नहीं है।


साईं ने कहा है : भाग - 112

साईं ने कहा है, कि.....
"मैं तुम्हे कभी नही भूलूंगा,
चाहे तुम हजारो मील दूर क्यो ना हो,
मैं तुम्हे सदा याद रखूँगा।"

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में : निदा फ़ाज़ली

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग

रोज़ मैं चांद बन के आता हूँ
दिन में सूरज सा जगमगाता हूँ

खनखनाता हूँ माँ के गहनों में
हँसता रहता हूँ छुप के बहनों में

मैं ही मज़दूर के पसीने में
मैं ही बरसात के महीने में

मेरी तस्वीर आँख का आंसू
मेरी तहरीर जिस्म का जादू


मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
मुझको पहचानते नहीं जब लोग

मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके
आसमानों में लौट जाता हूँ

मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूँ

शब्दार्थ :
तहरीर= लिखावट
ज़िया= प्रकाश

Tuesday 28 July 2009

बच्चों की दुआ : इक़बाल

लब पे' आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी,

ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी ।

दूर दुनिया का मेरे दम से अंधेरा हो जाए

हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए ।

हो मेरे दम से यूँ ही वतन की ज़ीनत,

जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत ।

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब !

इल्म की शमा से हो मुझ को मुहब्बत या रब !

हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना,

दर्दमंदों से, ज़ईफ़ों से मुहब्बत करना ।

मेरे अल्लाह, बुराई से बचाना मुझ को,

नेक जो राह हो, उस रह पे' चलाना मुझ को ।


शब्दार्थ :

शमा की सूरत=दीपक की भाँति;

ज़ीनत=शोभा;

इल्म की शमा=ज्ञान का दीपक;

ज़ईफ़ों=बूढ़े लोगों


बस आदमी से उखड़ा हुआ आदमी मिले : मनु 'बे-तख़ल्लुस'

बस आदमी से उखड़ा हुआ आदमी मिले
हमसे कभी तो हँसता हुआ आदमी मिले

इस आदमी की भीड़ में तू भी तलाश कर,
शायद इसी में भटका हुआ आदमी मिले

सब तेज़-गाम जा रहे हैं जाने किस तरफ़,
कोई कहीं तो ठहरा हुआ आदमी मिले

रौनक भरा ये रात-दिन जगता हुआ शहर
इसमें कहाँ, सुलगता हुआ आदमी मिले

इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले

बाहर से चहकी दिखती हैं ये मोटरें मगर
इनमें, इन्हीं पे ऐंठा हुआ आदमी मिले.

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले

साईं ने कहा है : भाग - 111

साईं ने कहा है, कि......
"तुम्हारे हर क्रियाकलाप का हिसाब मुझे ईश्वर को देना पड़ता है।"

सत्य तो बहुत मिले : अज्ञेय

खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले ।
कुछ नये कुछ पुराने मिले

कुछ अपने कुछ बिराने मिले
कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले
कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले
कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले
कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले ।
कुछ ने लुभायाकुछ ने डराया

कुछ ने परचाया-
कुछ ने भरमाया-
सत्य तो बहुत मिले
खोज़ में जब निकल ही आया ।
कुछ पड़े मिले

कुछ खड़े मिले
कुछ झड़े मिले
कुछ सड़े मिले
कुछ निखरे कुछ बिखरे
कुछ धुँधले कुछ सुथरे
सब सत्य रहे
कहे, अनकहे ।
खोज़ में जब निकल ही आया

सत्य तो बहुत मिले
पर तुम
नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम
मोम के तुम, पत्थर के तुम
तुम किसी देवता से नहीं निकले:
तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले
मेरे ही रक्त पर पले
अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती
मेरी अशमित चिता पर
तुम मेरे ही साथ जले ।
तुम-

तुम्हें तो
भस्म हो
मैंने फिर अपनी भभूत में पाया
अंग रमाया
तभी तो पाया ।
खोज़ में जब निकल ही आया,

सत्य तो बहुत मिले-
एक ही पाया ।

Monday 27 July 2009

गुरु प्रसाद : भाग - 2

Kashi Sai Image : Part - 1

राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ : रैदास

राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ, सेवा करौं न दासा।
गुनी जोग जग्य कछू न जांनूं, ताथैं रहूँ उदासा।।


भगत हूँ वाँ तौ चढ़ै बड़ाई। जोग करौं जग मांनैं।
गुणी हूँ वांथैं गुणीं जन कहैं, गुणी आप कूँ जांनैं।।१।।


ना मैं ममिता मोह न महियाँ, ए सब जांहि बिलाई।
दोजग भिस्त दोऊ समि करि जांनूँ, दहु वां थैं तरक है भाई।।२।।


मै तैं ममिता देखि सकल जग, मैं तैं मूल गँवाई।
जब मन ममिता एक एक मन, तब हीं एक है भाई।।३।।


कृश्न करीम रांम हरि राधौ, जब लग एक एक नहीं पेख्या।
बेद कतेब कुरांन पुरांननि, सहजि एक नहीं देख्या।।४।।


जोई जोई करि पूजिये, सोई सोई काची, सहजि भाव सति होई।
कहै रैदास मैं ताही कूँ पूजौं, जाकै गाँव न ठाँव न नांम नहीं कोई।।५।।

साईं ने कहा है : भाग - 110

साईं ने कहा है, कि.....
"मुझे भक्तो से नाम, स्मरण, दृढ़ निष्ठां और भक्ति चाइए,
इसके आलावा मुझे किसी वस्तु की इच्छा नही।"

Sunday 26 July 2009

गीता बोध - 1 : महात्मा गाँधी "बापू"




भारत : रामधारी सिंह "दिनकर"

सीखे नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं,
जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ;
या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो।
ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?

गांधी को उल्‍टा घिसो और जो धूल झरे,
उसके प्रलेप से अपनी कुण्‍ठा के मुख पर,
ऐसी नक्‍काशी गढो कि जो देखे, बोले,
आखिर , बापू भी और बात क्‍या कहते थे?

डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों,
मत चिढो,ध्‍यान मत दो इन छोटी बातों पर
कल्‍पना जगदगुरु की हो जिसके सिर पर,
वह भला कहां तक ठोस कदम धर सकता है?

औ; गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में,
तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी
यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया,
प्‍यासी धरती के लिए अमृतघट लाने को।


कौन ठगवा नगरिया लूटल हो : कबीर

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।

चंदन काठ के बनल खटोला
ता पर दुलहिन सूतल हो।

उठो सखी री माँग संवारो
दुलहा मो से रूठल हो।

आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा
नैनन अंसुवा टूटल हो

चार जाने मिल खाट उठाइन
चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो

कहत कबीर सुनो भाई साधो
जग से नाता छूटल हो

साईं ने कहा है : भाग - 109

साईं ने कहा है, कि......
"किसी के प्रति इर्ष्या, द्वेष और बदले की भावना मत रखो,
ईश्वर स्वयं तुम्हारी रक्षा करेंगे।"

The 42 Monks of India

Saturday 25 July 2009

भगवान के डाकिए : रामधारी सिंह "दिनकर"

पक्षी और बादल,

ये भगवान के डाकिए हैं

जो एक महादेश से

दूसरें महादेश को जाते हैं।

हम तो समझ नहीं पाते हैं

मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ

पेड़, पौधे, पनी और पहाड़

बाँचते हैं।


हम तो केवल यह आँकते हैं

कि एक देश की धरती

दूसरे देश को सुगंध भेजती है।

और वह सौरभ हवा में तैरते हुए

पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।

और एक देश का भाप

दूसरे देश में पानी

बनकर गिरता है।


सत्य : नागार्जुन

सत्य को लकवा मार गया है
वह लंबे काठ की तरह
पड़ा रहता है सारा दिन, सारी रात
वह फटी–फटी आँखों से
टुकुर–टुकुर ताकता रहता है सारा दिन, सारी रात
कोई भी सामने से आए–जाए
सत्य की सूनी निगाहों में जरा भी फर्क नहीं पड़ता
पथराई नज़रों से वह यों ही देखता रहेगा
सारा–सारा दिन, सारी–सारी रात

सत्य को लकवा मार गया है
गले से ऊपरवाली मशीनरी पूरी तरह बेकार हो गई है
सोचना बंद
समझना बंद
याद करना बंद
याद रखना बंद
दिमाग की रगों में ज़रा भी हरकत नहीं होती
सत्य को लकवा मार गया है
कौर अंदर डालकर जबड़ों को झटका देना पड़ता है
तब जाकर खाना गले के अंदर उतरता है
ऊपरवाली मशीनरी पूरी तरह बेकार हो गई है
सत्य को लकवा मार गया है

वह लंबे काठ की तरह पड़ा रहता है
सारा–सारा दिन, सारी–सारी रात
वह आपका हाथ थामे रहेगा देर तक
वह आपकी ओर देखता रहेगा देर तक
वह आपकी बातें सुनता रहेगा देर तक
लेकिन लगेगा नहीं कि उसने आपको पहचान लिया है

जी नहीं, सत्य आपको बिल्कुल नहीं पहचानेगा
पहचान की उसकी क्षमता हमेशा के लिए लुप्त हो चुकी है
जी हाँ, सत्य को लकवा मार गया है
उसे इमर्जेंसी का शाक लगा है
लगता है, अब वह किसी काम का न रहा
जी हाँ, सत्य अब पड़ा रहेगा

लोथ की तरह, स्पंदन शून्य मांसल देह की तरह!

कबीर ने कहा है : भाग - 15

कबीर ने कहा है, कि.....
"करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड ।
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौंहीं आंधां रूंड ॥"
भावार्थ -
हमने देखा ऐसों को, जो मुख को ऊँचा करके जोर-जोर से कीर्तन करते हैं । जानते-समझते तो वे कुछ भी नहीं कि क्या तो सार है और क्या असार । उन्हें अन्धा कहा जाय, या कि बिना सिर का केवल रुण्ड ?

साईं ने कहा है : भाग - 108

साईं ने कहा है, कि......
"अगर कोई हमसे घृणा करे तो हमे उस से दूर रहकर नाम जाप करना चाइए।"

Friday 24 July 2009

गुरु प्रसाद : भाग - 1

रे दिल गाफिल गफलत मत कर : कबीर

रे दिल गाफिल गफलत मत कर,
एक दिना जम आवेगा ॥

सौदा करने या जग आया,
पूँजी लाया, मूल गॅंवाया,
प्रेमनगर का अन्त न पाया,
ज्यों आया त्यों जावेगा ॥ १॥

सुन मेरे साजन, सुन मेरे मीता,
या जीवन में क्या क्या कीता,
सिर पाहन का बोझा लीता,
आगे कौन छुडावेगा ॥ २॥

परलि पार तेरा मीता खडिया,
उस मिलने का ध्यान न धरिया,
टूटी नाव उपर जा बैठा,
गाफिल गोता खावेगा ॥ ३॥

दास कबीर कहै समुझाई,
अन्त समय तेरा कौन सहाई,
चला अकेला संग न कोई,
कीया अपना पावेगा ॥ ४॥

साईं ने कहा है : भाग - 107

साईं ने कहा है, कि....
"मैं यहाँ बैठकर कुछ कहता हूँ,
और वह वहां घटित हो जाता है।"

Thursday 23 July 2009

भारत माता का मंदिर यह : मैथिलीशरण गुप्त

भारत माता का मंदिर यह,
समता का संवाद जहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है,
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

जाति-धर्म या संप्रदाय का,
नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,
सबका स्वागत, सबका आदर
सबका सम सम्मान यहाँ ।
राम, रहीम, बुद्ध, ईसा का,
सुलभ एक सा ध्यान यहाँ,
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के
गुण गौरव का ज्ञान यहाँ ।

नहीं चाहिए बुद्धि बैर की
भला प्रेम का उन्माद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है,
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

सब तीर्थों का एक तीर्थ यह
ह्रदय पवित्र बना लें हम
आओ यहाँ अजातशत्रु बन,
सबको मित्र बना लें हम ।
रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने
मन के चित्र बना लें हम ।
सौ-सौ आदर्शों को लेकर
एक चरित्र बना लें हम ।


बैठो माता के आँगन में
नाता भाई-बहन का
समझे उसकी प्रसव वेदना
वही लाल है माई का
एक साथ मिल बाँट लो
अपना हर्ष विषाद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

मिला सेव्य का हमें पुज़ारी
सकल काम उस न्यायी का
मुक्ति लाभ कर्तव्य यहाँ है
एक एक अनुयायी का
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
उठे एक जयनाद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

कबीर ने कहा है : भाग - 14

कबीर ने कहा है, कि....

"मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग ।

राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग ॥"

भावार्थ -

पहले मैं समझता था कि पोथियों का पढ़ना बड़ा अच्छा है, फिर सोचा कि पढ़ने से योग-साधन कहीं अच्छा है । पर अब तो इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि रामनाम से ही सच्ची प्रीति की जाय, भले ही अच्चै-अच्छे लोग मेरी निन्दा करें ।

Annual Report for the year ended on 31-03-2009

Balance sheet of Kashi Sai Foundation Society for the year ended on 31-03-2009 :-
Income & Expenditure Account of Kashi Sai Foundation Society for the year ended on 31-03-2009 :-
Receipts & Payment Account of Kashi Sai Foundation Society for the year ended on 31-03-2009 :-




साईं ने कहा है : भाग - 106

साईं ने कहा है, कि......
"लाभ पर खुशी क्यो ?
हानि पर रोना क्यो ?
वे क्यो ऐसा कहते है, ये मेरा है ?
इसका क्या आर्थ है ?"

Wednesday 22 July 2009

पीर मेरी, प्यार बन जा ! : गोपालदास "नीरज"

पीर मेरी, प्यार बन जा !
लुट गया सर्वस्व, जीवन,
है बना बस पाप- सा धन,
रे हृदय, मधु-कोष अक्षय, अब अनल-अंगार बन जा !
पीर मेरी, प्यार बन जा !
अस्थि-पंजर से लिपट कर,
क्यों तड़पता आह भर भर,
चिरविधुर मेरे विकल उर, जल अरे जल, छार बन जा !
पीर मेरी, प्यार बन जा !
क्यों जलाती व्यर्थ मुझको !
क्यों रुलाती व्यर्थ मुझको !
क्यों चलाती व्यर्थ मुझको !
री अमर मरु-प्यास, मेरी मृत्यु ही साकार बन जा !
पीर मेरी, प्यार बन जा !

साईं ने कहा है : भाग - 105

साईं ने कहा है, कि.....
"ईश्वर का प्रेम भावः से स्मरण करो,
मुसीबत में वे हमारी रक्षा के लिए आयेंगे।"

Tuesday 21 July 2009

सर फ़रोशी की तमन्ना : राम प्रसाद बिस्मिल

सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।

करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीता
देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।

वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।

खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद
आशिको का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।

है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर

खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।

हाथ जिन में हो जुनून कटते नहीं तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है।

हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पे कफन
जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये क़दम

ज़िन्दगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है।

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंक़िलाब
होश दुशमन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाए जो हम से दम कहां मंज़िल में है।

यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।

कबीर ने कहा है : भाग - 13

कबीर ने कहा है, कि....
"पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥"
भावार्थ -
मन हर्ष में डूब जाता है पद गाते हुए, और साखियाँ कहने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, और हरिनाम का मर्म न समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है ।

गरज बरस प्यासी धर्ती पर फिर पानी दे मौला : निदा फ़ाज़ली

गरज बरस प्यासी धर्ती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला
दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला
फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला
फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला
तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हो
जीनेवालों को मरने की आसानी दे मौला

ऐ मालिक तेरे बंदे हम

मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ताकि हंसते हुये निकले दम

जब ज़ुलमों का हो सामना
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करें
हम भलाई भरें
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम
और मिटे बैर का ये भरम
नेकी पर चलें...........

ये अंधेरा घना छा रहा
तेरा इनसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर
कुछ न आता नज़र
सुख का सूरज छिपा जा रहा
है तेरी रोशनी में वो दम
जो अमावस को कर दे पूनम
नेकी पर चलें...........

बड़ा कमज़ोर है आदमी
अभी लाखों हैं इसमें कमीं
पर तू जो खड़ा
है दयालू बड़ा
तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तूने हमें जब जनम
तू ही झेलेगा हम सबके ग़म
नेकी पर चलें............

साईं ने कहा है : भाग - 104

साईं ने कहा है, कि.....
"अगर कोई तुमसे कुछ कहे तो,
उसका नम्रतापूर्वक संक्षिप्त में उत्तर दो।"

हिन्द में तो मज़हबी हालत है अब नागुफ़्ता बेह : अकबर इलाहाबादी

हिन्द में तो मज़हबी हालत है अब नागुफ़्ता बेह
मौलवी की मौलवी से रूबकारी हो गई


एक डिनर में खा गया इतना कि तन से निकली जान
ख़िदमते-क़ौमी में बारे जाँनिसारी हो गई

अपने सैलाने-तबीयत पर जो की मैंने नज़र
आप ही अपनी मुझे बेएतबारी हो गई

नज्द में भी मग़रिबी तालीम जारी हो गई
लैला-ओ-मजनूँ में आख़िर फ़ौजदारी हो गई

शब्दार्थ :
नागुफ़्ता बेह= जिसका ना कहना ही बेहतर हो;
रूबकारी=जान-पहचान
जाँनिसारी= जान क़ुर्बान करना
सैलाने-तबीयत= तबीयत की आवारागर्दी
नज्द= अरब के एक जंगल का नाम जहाँ मजनू मारा-मारा फिरता था।

Monday 20 July 2009

न चाहूं मान : राम प्रसाद बिस्मिल

न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।
मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।

करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखूं हिन्दी ।
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।
करुं में प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।

सब की पूजा एक सी : निदा फ़ाज़ली

सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम

सीता, रावण, राम का, करें विभाजन
लोग एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग

मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशाँ
किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान

साईं ने कहा है : भाग - 103

साईं ने कहा है, कि....
"अज्ञान का नाश करने से परम ज्ञान की प्राप्ति होती है।"

Sunday 19 July 2009

हे मातृभूमि : राम प्रसाद बिस्मिल

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।

माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;

जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।

जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;

उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;

करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।

सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;

वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।


तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।

मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।

कबीर ने कहा है : भाग - 12

कबीर ने कहा है, कि.....
"जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल ।
पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल ॥
भावार्थ -
मुँह से जैसी बात निकले, उसीपर यदि आचरण किया जाय, वैसी ही चाल चली जाय, तो भगवान् तो अपने पास ही खड़ा है, और वह उसी क्षण निहाल कर देगा ।

Little Story....

Very nice Little Story....
I thought, I should share with all of you...!!

"While a man was polishing his new car, his four year old son picked stone & scratched lines on the side of car. In anger, the man took the child's hand & hit it many times, not realizing he was using a wrench.
At the hospital, the child lost all his fingers due to multiple fractures. When the child saw his father...with painful eyes he asked 'Dad when will my fingers grow back?' Man was so hurt and speechless. He went back to car and kicked it many times. Devastated by his own actions.. sitting in front of the car he looked at the scratches, child had written 'LOVE YOU DAD'. Next day that man committed suicide... "

"Anger and Love have no limits..."
Always remember that- Things are to be used and people are to be loved, but the problem in today's world is that, People are used and things are loved..?

साईं ने कहा है : भाग - 102

साईं ने कहा है, कि....
"साईं का ध्यान करने से पाप, दुःख, तकलीफ, ताप, रोग और तनाव का अंत होता है।"

Saturday 18 July 2009

चलो फिर से मुस्कुराएं : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल जलाएं



जो गुज़र गयी हैं रातें
उन्हें फिर जगा के लाएं
जो बिसर गयी हैं बातें

उन्हें याद में बुलाएं
चलो फिर से दिल लगाये
चलो फिर से मुस्कुराएं

किसी शह-नशीं पे झलकी
वो धनक किसी क़बा की

किसी रग में कसमसाई
वो कसक किसी अदा
कोई हर्फे-बे-मुरव्वत

किसी कुंजे-लब से फूटा

वो छनक के शीशा-ए-दिल

तहे-बाम फिर से टूटा



ये मिलन की, नामिलन की

ये लगन की और जलन की
जो सही हैं वारदातें


जो गुज़र गयी हैं रातें
जो बिसर गयी हैं बाते


कोई इनकी धुन बनाएं
कोई इनका गीत गाएं
चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल लगाएं।

साईं ने कहा है : भाग - 101

साईं ने कहा है, कि....
"समस्त प्राणियों में ईश्वर का दर्शन करो।"

Friday 17 July 2009

अब तो पथ यही है : दुष्यंत कुमार

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है।

अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार,
अब तो पथ यही है।

क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है।

यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है।

साईं ने कहा है : भाग - 100

साईं ने कहा है, कि...
"जो मुझे अर्पित किए बिना कुछ भी नही खाता है,
मैं उसके अधीन हूँ, ऐसा अभ्यास करने से
वो मुझमे एकाकार हो जाता है।"

Thursday 16 July 2009

गीता सार

कर कर्म अभागा मत बन तू.... स्वयं भाग्य विधाता अपना बन तू ॥
निष्काम कर्म तू करता जा.... सत्या अहिंसा के मार्ग चड़ता जा ॥
तत्व ज्ञान तुम्हे मैं देता हूँ.... तेरा मोह भंग कर देता हूँ ॥
अर्जुन तू चिंता त्याग ज़रा। मैं स्वयं देख तेरे पास खड़ा ॥
तुम्हे गीता ज्ञान सुनाता हूँ.... भक्त अपना तुझे बनता हूँ ॥
ब्रह्मा , श्रत्रिय , वैश्य क्षुद्र .... सब कर्मो से बन जाते हैं ॥
इन्ही वर्णौ से कोई कोई .... सन्यासी , कर्म योग अपनाते हैं ॥
अर्जुन ! कर्म टू सब कोई करता.... तुम्हे '' सुकर्म '' ज्ञान बताता हूँ ॥
घबरा मत अर्जुन तू भक्त मेरा .... भय भ्रम करूंगा दूर तेरा ॥
जो मेरे भक्त बन जाते हैं ....प्रिय भक्त सखा बन जाते हैं ॥
सत्य , रज, तम तेरे बन्धन हैं....गुण अवगुण सभी समाये हैं ॥
काम ,क्रोध ,लोभ,अंहकार, मोह ....पाँच चोर यही फसाये हैं ॥
अग्नि ,जल ,पृथ्वी की बात क्या ....तुझे विराट रूप दिखाता हूँ ॥
मैं स्वयं ही पैदा करता हूँ ....मैं स्वयं सभी को खाता हूँ ॥
तू अर्जुन किसी को क्या मारे .... सब पहले कर्मो के मारे हैं ॥
मेरा परम भक्त तू है अर्जुन .... सब भेद तुम्हे समझा ही दिया ॥
अब मर्जी तेरी है , धनंजय .... विराट रूप तुमने देखा है॥
तन मानव का जो है पाया .... शुभ कर्मो का लेखा जोखा है॥
भय्क्रांत से अर्जुन मूक हुए .... कुछ बोलन मुँह से निकल रहे॥
हे कृष्णा .... तुम्ही टू सब कुछ हो मेरे अहम भ्रम सब निकल गए॥
प्रभु तेरी शरण मी आन खड़ा .... जो कहो वही मैं कर पाऊँ॥
इस युद्ध में धर्म की जीत करो .... मैं भक्त तेरा भी तर जाऊं॥
बस अर्जुन जो मैं चाहता था .... तुम्हे गीता ज्ञान सिखाना था॥
सत्य धर्म की जीत करनी थी .... सत्य , अहिंसा का मार्ग दिखाना था॥
मेरा स्मरण कभी भी कर के देखो .... मैं झट प्रगत हो जाता हूँ॥
सत्य धर्म की रक्षा के खातिर .... युग युग अवतार ले आता हूँ॥
वेदों का सार यह ''गीता'' है .... सब ग्रंथो का सार यह वेद ही है॥
वो' ही धन्य पुरूष है जो गीता ज्ञान ले जीते हैं॥
श्री कृष्ण चरण की रज ले कर । बन अर्जुन की तरह नित पीते हैं॥

हर श्वास में हो ईश्वर का ध्यान

मनुष्य को हर सांस के साथ बाबा सांई का सुमिरन करते रहना चाहिए। किसी भी सांस को व्यर्थ करना मनुष्य के लिए उचित नहीं है क्योंकि न जाने कब सांस का आना जाना बंद हो जाए और यह जीवन लीला समाप्त हो जाए। अत: हर सांस व हर पल का प्रयोग बाबा का सुमिरन कर मानव को अपना जीवन सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।जप-तप व संयम साधना ये सभी सुमिरन के अंदर ही आ जाते हैं। इस रहस्य को भक्त जन ही समझ सकते हैं कि सुमिरन के बराबर कुछ नहीं है अर्थात जप-तप और संयम के साधक भी सुमिरन का आधार किसी न किसी रूप में प्राप्त कर ही लेते हैं। परन्तु सुमिरन भक्त तो केवल सुमिरन में ही सभी सुख मानता है। प्रेम तो अनमोल है। इसका मूल्य कौन चुका सकता है। इस भाव को ध्यान में रखते हुए कबीर जी कहते हैं कि हमने प्रेम को बकते हुए सुना है परन्तु उसके बदले शीश काटकर देना पड़ता है। ऐसे में पूछताछ करने में विलम्ब न करो यह तो सस्ता ही है उसी क्षण शीश काटकर मोल चुका दो। जब तक हृदय में प्रेम न हो तब तक धैर्य नहीं होता और जब तक जीवन में विरह की व्याकुलता न हो तब तक वैराग्य नहीं होता कोई चाहे कितने भी यत्न कर ले इसी प्रकार बिना सदगरु के मन और हृदय के मैले दाग दूर नहीं हो सकते। काम, क्रोध, मद, लोभ-मोह एवं अन्य दुष्ट विचारों पर काबू पाना ही मानव का पहला कर्तव्य है क्योंकि इनके अधीन होने पर मानव वहशी हो जाता है।

उदाहरणार्थ :- जब आपके अंदर जब क्रोध आता है और अगर आपके नाखून लंबे-लंबे होते हैं तो आप डंडे की ओर न जाकर के नाखूनों से ही काम लेते हैं। वास्तव में क्रोध आने पर मानव इंसानियत को भूल जाता है और वह जानवरों से बदतर व्यवहार करने लग जाता है।

इसीलिए संतों ने काम, क्रोध, मोह व लोभ आदि के त्याग के लिए कहा है क्योंकि मानव में जब इन दुर्गुणों का समावेश होता है तो उसके अंदर गंदे विचार जन्म लेते है और उसका व्यवहार पशुवत होता जाता है। काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार आदि अवगुणों के त्याग में ही मानव हित निहित हैं।

आदमी को प्यार दो : गोपालदास "नीरज"

सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह है,
भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह है,
राह को सँवार दो,
निगाह को निखार दो,
आदमी हो तुम कि उठा आदमी को प्यार दो,
दुलार दो।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो।
तुम हो एक फूल कल जो धूल बनके जाएगा,
आज है हवा में कल ज़मीन पर ही आएगा,
चलते व़क्त बाग़ बहुत रोएगा-रुलाएगा,
ख़ाक के सिवा मगर न कुछ भी हाथ आएगा,
ज़िंदगी की ख़ाक लिए हाथ में,
बुझते-बुझते सपने लिए साथ में,
रुक रहा हो जो उसे बयार दो,
चल रहा हो उसका पथ बुहार दो।
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,
दुलार दो।
ज़िंदगी यह क्या है- बस सुबह का एक नाम है,
पीछे जिसके रात है और आगे जिसके शाम है,
एक ओर छाँह सघन, एक ओर घाम है,
जलना-बुझना, बुझना-जलना सिर्फ़ जिसका काम है,
न कोई रोक-थाम है,
ख़ौफनाक-ग़ारो-बियाबान में,
मरघटों के मुरदा सुनसान में,
बुझ रहा हो जो उसे अंगार दो,
जल रहा हो जो उसे उभार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,
दुलार दो।
ज़िंदगी की आँखों पर मौत का ख़ुमार है,
और प्राण को किसी पिया का इंतज़ार है,
मन की मनचली कली तो चाहती बहार है,
किंतु तन की डाली को पतझर से प्यार है,
क़रार है,
पतझर के पीले-पीले वेश में,
आँधियों के काले-काले देश में,
खिल रहा हो जो उसे सिंगार दो,
झर रहा हो जो उसे बहार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,
दुलार दो।
प्राण एक गायक है, दर्द एक तराना है,
जन्म एक तारा है जो मौत को बजाता है,
स्वर ही रे! जीवन है, साँस तो बहाना है,
प्यार की एक गीत है जो बार-बार गाना है,
सबको दुहराना है,
साँस के सिसक रहे सितार पर आंसुओं के गीले-गीले तार पर,
चुप हो जो उसे ज़रा पुकार दो,
गा रहा हो जो उसे मल्हार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,
दुलार दो।
एक चाँद के बग़ैर सारी रात स्याह है,
एक फूल के बिना चमन सभी तबाह है,
ज़िंदगी तो ख़ुद ही एक आह है कराह है,
प्यार भी न जो मिले तो जीना फिर गुनाह है,
धूल के पवित्र नेत्र-नीर से,
आदमी के दर्द, दाह, पीर से,
जो घृणा करे उसे बिसार दो,
प्यार करे उस पै दिल निसार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,
दुलार दो।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो॥

साईं ने कहा है : भाग - 99

साईं ने कहा है, कि.....
"ईश्वर की शरण में आनेवाले और
उनके स्मरण करने वाले के,
ईश्वर सदा ही ऋणी रहते है।"

Wednesday 15 July 2009

Why are you unnecessarily worrying? :– Bhagawan Shri Krishna

Why are you unnecessarily worrying?

Whom do you fear?

Who can kill you?

Soul is not born, nor does it die.

What has happened has happened for the best. What is happening is happening for the best. What will happen will happen for the best.

Do not brood over the past. Do not, worry about the future. The present is on.

What have you lost, that you are weeping? What have you brought, that you have lost? What have you made, that has been destroyed? You brought not anything. What you have, you got from here. What was given, was given here. What you took, you took from this universe. What you gave, you gave unto this universe. You have come empty handed and shall go empty handed. What is yours today was somebody else’s in the past and will be somebody else’s in future. You think it is yours and are deeply engrossed in it.

This attachment is the cause of all your sorrow. Change is the Law of Life. What you call Death is Life itself. In a moment you are a millionaire in the very next you are poor. Mine-Yours; Small-Big; Ours-Theirs; Remove this from your mind, then everything is yours and you are: everybody’s.

This Body is not yours, nor you are of this body. Earth, Water, Air, Fire and Ether comprisee this body and unto this shall it turn. But the Soul is Immortal, then what are you? Surrender unto the Lord, he is ultimate support. He who experiences this is completely free from Fear, Worry and Despair. Whatever you do, offer it unto Him. By this you shall forever experience Eternal Bliss.

–Bhagawan Shri Krishna

खट्टी चटनी जैसी माँ : निदा फ़ाज़ली

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।


बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे ,
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ ।


चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली ,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ ।


बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां ।


बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ ।

साईं ने कहा है : भाग - 98

साईं ने कहा है, कि....
"जब तुम मोह - माया के बंधन तोड़कर,
काम पर नियंत्रण कर प्रभु की सेवा करोगे,
तब ईश्वर कृपा स्वयं हो जाती है।"

Tuesday 14 July 2009

जब यार देखा नैन भर : अमीर खुसरो

जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता
उतर ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर।

जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर।

तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली तुम आय कर।

जाना तलब तेरी करूँ दीगर तलब किसकी करू
तेरे जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर।

मेरी जो मन तुम ने लिया, तुम उठा गम को दिया
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर।

खुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर।

साईं ने कहा है : भाग - 97

साईं ने कहा है, कि....
"मेरा भक्त चाहे हजारो कोस की दुरी पर ही क्यो न हो,
वह मेरी तरफ़ ऐसे खीचा चला आता है,
जैसे धागे से बंधी हुई चिरिया खीच कर स्वयं चली आती है।"

Monday 13 July 2009

कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे,
जो इश्क़ को काम समझते थे,
या काम से आशिक़ी करते थे,
हम जीते जी मसरूफ़ रहे,
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया।

काम इश्क़ के आड़े आता रहा,
और इश्क़ से काम उलझता रहा,
फिर आख़िर तंग आकर हम ने,
दोनों को अधूरा छोड़ दिया।

साईं ने कहा है : भाग - 96

साईं ने कहा है, कि....
"मैं तुम्हे संपूर्ण ज्ञान देने के लिए तैयार हूँ,
तुम्हे कही और जाने की क्या ज़रूरत ?"

Sunday 12 July 2009

साईं ने कहा है : भाग - 95

साईं ने कहा है, कि.....
"मेरे वचन कभी असत्य नही होते।"

कहि मन रांम नांम संभारि : रैदास

कहि मन रांम नांम संभारि।
माया कै भ्रमि कहा भूलौ, जांहिगौ कर झारि।। टेक।।
देख धूँ इहाँ कौन तेरौ, सगा सुत नहीं नारि।
तोरि तंग सब दूरि करि हैं, दैहिंगे तन जारि।।१।।
प्रान गयैं कहु कौंन तेरौ, देख सोचि बिचारि।
बहुरि इहि कल काल मांही, जीति भावै हारि।।२।।
यहु माया सब थोथरी, भगति दिसि प्रतिपारि।
कहि रैदास सत बचन गुर के, सो जीय थैं न बिसारि।।३।।

Saturday 11 July 2009

साईं ने कहा है : भाग - 94

साईं ने कहा है, कि....
"जो प्रेम से मुझे पुकारता है,
मैं उसके समक्ष प्रकट हो,
उसकी सहायता करता हूँ।"

यह जो महंत बैठे हैं : सैयद इंशा अल्ला खाँ 'इंशा'

यह जो महंत बैठे हैं राधा के कुण्ड पर ।
अवतार बन कर गिरते हैं परियों के झुण्ड पर ।।

शिव के गले से पार्वती जी लिपट गयीं,
क्या ही बहार आज है ब्रह्मा के रुण्ड पर ।

राजीजी एक जोगी के चेले पे ग़श हैं आप,
आशिक़ हुए हैं वाह अजब लुण्ड मुण्ड पर ।

'इंशा' ने सुन के क़िस्सा-ए-फरहाद यूँ कहा,
करता है इश्क़ चोट तो ऐसे ही मुण्ड पर ।

Friday 10 July 2009

ऐसी भगति न होइ रे भाई : रैदास

ऐसी भगति न होइ रे भाई।

रांम नांम बिन जे कुछ करिये, सो सब भरम कहाई।। टेक।।

भगति न रस दांन, भगति न कथै ग्यांन, भगत न बन मैं गुफा खुँदाई।

भगति न ऐसी हासि, भगति न आसा पासि, भगति न यहु सब कुल कानि गँवाई।।१।।

भगति न इंद्री बाधें, भगति न जोग साधें, भगति न अहार घटायें, ए सब क्रम कहाई।

भगति न निद्रा साधें, भगति न बैराग साधें, भगति नहीं यहु सब बेद बड़ाई।।२।।

भगति न मूंड़ मुड़ायें, भगति न माला दिखायें, भगत न चरन धुवांयें, ए सब गुनी जन कहाई।

भगति न तौ लौं जांनीं, जौ लौं आप कूँ आप बखांनीं, जोई जोई करै सोई क्रम चढ़ाई।।३।।

आपौ गयौ तब भगति पाई, ऐसी है भगति भाई, राम मिल्यौ आपौ गुण खोयौ, रिधि सिधि सबै जु गँवाई।

कहै रैदास छूटी ले आसा पास, तब हरि ताही के पास, आतमां स्थिर तब सब निधि पाई।।४।।

साईं ने कहा है : भाग - 93

साईं ने कहा है, कि....
"जो मेरा स्मरण करते है, मैं सदा उसका ध्यान रखता हूँ।"

Thursday 9 July 2009

साईं ने कहा है : भाग - 92

साईं ने कहा है, कि....
"केवल सांसारिक सुख और सुविधायों के लिए ही धन का व्यय मत करो।"

तुझी को जो यां जल्वा फ़र्मा न देखा : ख़्वाजा मीर दर्द

तुझी को जो यां जल्वा फ़र्मा न देखा,
बराबर है दुनिया को देखा न देखा।

मेरा ग़ुन्चा-ए-दिल वोह दिल-गिरिफ़ता,

कि जिस को कसो ने कभी वा न देखा।

अजिअत, मुसीबत, मलामत, बलाएं,
तेरे इश्क़ में हम ने क्या क्या न देखा।

किया मुझ को दाग़ों सर्व-ए-चिराग़ां,
कभो तू ने आकर तमाशा न देखा।

तग़ाफ़ुल ने तेरे ये कुछ दिन दिखाए,
इधर तूने लेकिन न देखा, न देखा।

हिजाब-ए-रुख़-ए-यार थे आप ही हम,
खुली आँख जब, कोई परदा न देखा।

शब-ओ-रोज़ ए 'दर्द' दरपाई हूँ उस के,
कसो ने जिसे यां समझा न देखा।

Wednesday 8 July 2009

साईं ने कहा है : भाग - 91

साईं ने कहा है, कि....
"मैं हर एक से नही मांगता,
मैं केवल उसी से मांगता हूँ,
जिससे ईश्वर मांगने को कहते है।"

भिक्षुक : सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

वह आता...
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता....
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।

साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!

Tuesday 7 July 2009

साईं ने कहा है : भाग - 90

साईं ने कहा है, कि....
"केवल ईश्वर ही स्फुर्तिवर्धकप्रेरणा देकर उत्साहित करते है,
वे ही दैवी भावना उत्तपन करते हैं।"

जग में आकर इधर उधर देखा : ख़्वाजा मीर दर्द

जग में आकर इधर उधर देखा,
तू ही आया नज़र जिधर देखा।
जान से हो गए बदन ख़ाली,

जिस तरफ़ तूने आँख भर देखा।
नाला, फ़रियाद, आह और ज़ारी,

आप से हो सका सो कर देखा।
उन लबों ने की न मसीहाई,

हम ने सौ-सौ तरह से मर देखा।
ज़ोर आशिक़ मिज़ाज है कोई,

‘दर्द’ को क़िस्स:-ए- मुख्तसर देखा।

Monday 6 July 2009

साईं ने कहा है : भाग - 89

साईं ने कहा है, कि....
"जो साईं का पूजन करते है,
वे सदैव परमानंद का अनुभव करते हैं,
क्योकि साईं आत्मज्ञान की खान है।"

तेरा, मैं दीदार-दीवाना : मलूकदास

तेरा, मैं दीदार-दीवाना।
घड़ी घड़ी तुझे देखा चाहूँ,
सुन साहेबा रहमाना॥

हुआ अलमस्त खबर नहिं तनकी,
पीया प्रेम-पियाला।
ठाढ़ होऊँ तो गिरगिर परता,
तेरे रँग मतवाला॥

खड़ा रहूँ दरबार तुम्हारे,
ज्यों घरका बंदाजादा।
नेकीकी कुलाह सिर दिये,
गले पैरहन साजा॥

तौजी और निमाज न जानूँ,
ना जानूँ धरि रोजा।
बाँग जिकर तबहीसे बिसरी,
जबसे यह दिल खोज॥

कह मलूक अब कजा न करिहौं,
दिलहीसों दिल लाया।
मक्का हज्ज हियेमें देखा,
पूरा मुरसिद पाया॥

Sunday 5 July 2009

साईं ने कहा है : भाग - 88

साईं ने कहा है, कि....
"जो मुझसे प्रेम कर मुझमें पूर्ण विश्वास रखते है,
उनके समस्त कार्यकलापों का नियंत्रण व
संचालन मैं स्वयं करता हूँ।"

कबीर ने कहा है : भाग - 11

कबीर ने कहा है, कि....
"रहना नहीं देस बिराना है।
यह संसार कागद की पुडि़या, बूँद पड़े घुल जाना है।
यह संसार कॉंट की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है।
यह संसार झाड़ और झॉंखर, आग लगे बरि जाना है।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरू नाम ठिकाना है।"

तुम आज हंसते हो हंस लो मुझ पर : ख़्वाजा मीर दर्द

तुम आज हँसते हो हंस लो मुझ पर ये आज़माइश ना बार-बार होगी
मैं जानता हूं मुझे ख़बर है कि कल फ़ज़ा ख़ुशगवार होगी।

रहे मुहब्बत में ज़िन्दगी भर रहेगी ये कशमकश बराबर,
ना तुमको क़ुरबत में जीत होगी ना मुझको फुर्कत में हार होगी।

हज़ार उल्फ़त सताए लेकिन मेरे इरादों से है ये मुमकिन,
अगर शराफ़त को तुमने छेड़ा तो ज़िन्दगी तुम पे वार होगी।

Saturday 4 July 2009

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार : संत कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये ।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं ।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार ।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ॥
गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार ।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार ।
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ ।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥
गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

साईं ने कहा है : भाग - 87

साईं ने कहा है, कि.....
"प्रवेश के लिए मुझे किसी द्वार की आवश्यकता नही,
मेरा कोई स्वरुप और आकर नही है, मैं घट-घट में व्यापत हूँ।"

Friday 3 July 2009

कबीर ने कहा है : भाग - 10

कबीर ने कहा है, कि.....

"अरे दिल,
प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा।।
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता।।
सिर पाहन का बोझा ल‍ीता, आगे कौन छुड़ावैगा।।
परली पार मेरा मीता खडि़या, उस मिलने का ध्‍यान न धरिया।।
टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा।।
दास कबीर कहैं समझाई, अंतकाल तेरा कौन सहाई।।
चला अकेला संग न कोई, किया अपना पावैगा।"

साईं ने कहा है : भाग - 86

साईं ने कहा है, कि....
"नित्य मंत्रो का उच्चारण करने से सुख समृधि में वृद्धि होगी
तथा मन शांत व एअकाग्र हो जाएगा।"

Thursday 2 July 2009

राम बिनु तन को ताप न जाई : संत कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई ।
जल में अगन रही अधिकाई ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥

तुम जलनिधि मैं जलकर मीना ।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा ।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला ।
कहै कबीर राम रमूं अकेला ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥

साईं ने कहा है : भाग - 85

साईं ने कहा है, कि.....
"अगर कोई व्यक्ति एक बार द्वारकामाई में आ जाए,
तो उसकी सभी परेशानिया व दुःख दर्द समाप्त हो जाते है।"

Wednesday 1 July 2009

अब कुछ मरम बिचारा : रैदास

अब कुछ मरम बिचारा हो हरि।
आदि अंति औसांण राम बिन, कोई न करै
निरवारा हो हरि।। टेक।।
जल मैं पंक पंक अमृत जल, जलहि सुधा कै जैसैं।

ऐसैं करमि धरमि जीव बाँध्यौ, छूटै तुम्ह बिन कैसैं
हो हरि।।१।।
जप तप बिधि निषेद करुणांमैं, पाप पुनि दोऊ
माया।
अस मो हित मन गति विमुख धन, जनमि जनमि
डहकाया हो हरि।।२।।
ताड़ण, छेदण, त्रायण, खेदण, बहु बिधि करि ले
उपाई।
लूंण खड़ी संजोग बिनां, जैसैं कनक कलंक न
जाई।।३।।
भणैं रैदास कठिन कलि केवल, कहा उपाइ अब
कीजै।
भौ बूड़त भैभीत भगत जन, कर अवलंबन
दीजै।।४।।

साईं ने कहा है : भाग - 84

साईं ने कहा है, कि.....
"अगर तुम मेरी शक्ति के प्रकाश को देखना चाहते हो तो,
अंहकार त्याग कर विनम्र हो जाओ और मेरा ध्यान करो।"

चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...