Thursday 31 December 2009

मोको कहां ढूढे रे बन्दे : कबीर (Kabir)

मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीर्थ मे
ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में
ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में
ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किर्या कर्म में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में
नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में

English translation by Gurudev Rabindranath Tagore:

O Man, where dost thou seek Me?
Lo! I am beside thee.

I am neither in temple nor in mosque
I am neither in Kaaba nor in Kailash

Neither am I in rites and ceremonies,
nor in Yoga and renunciation.

If thou art a true seeker,
thou shalt at once see Me
thou shalt meet Me in a moment of time.
Kabîr says, "O Sadhu! God is the breath of all breath."

Saturday 26 December 2009

अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई : अमीर खुसरो

अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई,
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।
छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रिजना
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
प्रेम वटी का मदवा पिलाय के मतवारी कर दीन्हीं रे
मोसे नैंना मिलाई के।
गोरी गोरी बईयाँ हरी हरी चूरियाँ
बइयाँ पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
खुसरो निजाम के बल-बल जइए
मोहे सुहागन किन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
ऐ री सखी मैं तोसे कहूँ, मैं तोसे कहूँ, छाप तिलक....।

Sunday 20 December 2009

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार : निदा फ़ाज़ली

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार


लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम


सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप


सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

Friday 18 December 2009

भोजपुर : नागार्जुन ( भाग - 4 )

एक–एक सिर सूँघ चुका हूँ
एक–एक दिल छूकर देखा
इन सबमें तो वही आग है,
ऊर्जा वो ही...
चमत्कार है इस माटी में
इस माटी का तिलक लगाओ
बुद्धू इसकी करो वंदनायही अमृत है¸
यही चंदनाबुद्धू इसकी करो वंदना

यही तुम्हारी वाणी का कल्याण करे
गीयही मृत्तिका जन–कवि में अब प्राण भरे
गीचमत्कार है इस माटी में...
आओ, आओ, आओ, आओ!
तुम भी आओ, तुम भी आओ
देखो, जनकवि, भाग न जाओ
तुम्हें कसम है इस माटी की
इस माटी की/ इस माटी की/ इस माटी की

Wednesday 16 December 2009

जो नर दुख में दुख नहिं मानै : नानकदेव

जो नर दुख में दुख नहिं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह अभिमाना।
हरष शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा।
काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं, तिन्ह यह जुगुति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों, ज्यों पानी सों पानी।।

Sunday 13 December 2009

जपु जी : नानकदेव

थापिया न जाइ, कीता न होइ, आपै आप निरंजन सोइ॥
जिन सेविया तिन पाइया मानु, नानक गाविए गुणी निधानु॥
गाविये सुणिये मन रखि भाउ, दु:ख परिहरि सुख घर लै जाइ॥
गुरुमुखि नादं गुरुमुखि वेदं, गुरुमुखि रहिया समाई॥
गुरु ईसरू गोरखु बरमा, गुरु पारबती माई॥
जे हउ जाणा आखा नाहीं, कहणा कथनु न जाई।
गुरु इक देइ बुझाई।
सभना जीआ का इकु दाता, सोमैं बिसरि न जाई॥
सुणिये सतु संतोखु गिआनु, सुणिये अठि सठि का इसनानु।
सुणिये पढि-पढि पावहि मानु, सुणिये लागै सहजि धियानु॥
'नानक भगताँ सदा बिगासु, सुणिये दु:ख पाप का नासु॥
असंख जप, असंख भाउ, असंख पूजा असंख तप ताउ॥
असंख गरंथ मुखि वेदपाठ, असंख जोग मनि रहहिं उदास॥
असंख भगत गुण गिआन विचार, असंख सती असंख दातार॥
असंख सूर, मुँह भख सार, असंख मोनी लिव लाइ तार॥
कुदरति कवण कहा बिचारु, बारियआ न जावा एक बार॥
जो तुधु भावै साईं भली कार, तू सदा सलामति निरंकार॥

Friday 11 December 2009

भोजपुर : नागार्जुन (भाग - 3 )

यहाँ अहिंसा की समाधि है
यहाँ कब्र है पार्लमेंट की
भगतसिंह ने नया–नया अवतार लिया है
अरे यहीं पर
अरे यहीं पर
जन्म ले रहे
आजाद चन्द्रशेखर भैया भी
यहीं कहीं वैकुंठ शुक्ल हैं
यहीं कहीं बाधा जतीन हैं
यहां अहिंसा की समाधि है...

Tuesday 8 December 2009

को काहू को भाई : नानकदेव

हरि बिनु तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥

Sunday 6 December 2009

Bar Council to provide pension, compensation to lawyers

Bar Council to provide pension, compensation to lawyers

दुनिया : गुलाब खंडेलवाल

दुनिया न भली है न बुरी है,
यह तो एक पोली बांसुरी है
जिसे आप चाहे जैसे बजा सकते हैं,
चाहे जिस सुर से सजा सकते हैं,
प्रश्न यही है,
आप इस पर क्या गाना चाहते हैं!
हंसना, रोना या केवल गुनगुनाना चाहते हैं!
सब कुछ इसी पर निर्भर करता है
कि आपने इसमें कैसी हवा भरी है,
कौन-सा सुर साधा है-
संगीत की गहराइयों में प्रवेश किया है
या केवल ऊपरी घटाटोप बांधा है,
यों तो हर व्यक्तिअपने तरीके से ही जोर लगाता है,
पर ठीक ढंग से बजानायहां बिरलों को ही आता है,
यदि आपने सही सुरों का चुनाव किया है
और पूरी शक्ति से फूंक मारी
तो बांसुरी आपकी उंगलियों के इशारे पर थिरकेगी,
पर यदि आपने इसमें अपने हृदय की धडकनन
हीं उतारी हैतो जो भी आवाज निकलेगी,
अधूरी ही निकलेगी।

Friday 4 December 2009

भोजपुर : नागार्जुन (भाग - 2 )

मुन्ना, मुझको
पटना–दिल्ली मत जाने दो
भूमिपुत्र के संग्रामी तेवर लिखने दो
पुलिस दमन का स्वाद मुझे भी तो चखने दो
मुन्ना, मुझे पास आने दो
पटना–दिल्ली मत जाने दो

Thursday 3 December 2009

झूठी देखी प्रीत : नानकदेव

जगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥

Tuesday 1 December 2009

भोजपुर : नागार्जुन (भाग - 1 )

यहीं धुआँ मैं ढूँढ़ रहा था
यही आग मैं खोज रहा था
यही गंध थी मुझे चाहिए
बारूदी छर्रें की खुशबू!
ठहरो–ठहरो इन नथनों में इसको भर लूँ...
बारूदी छर्रें की खुशबू!
भोजपुरी माटी सोंधी हैं,
इसका यह अद्भुत सोंधापन!
लहरा उठ्ठीकदम–कदम पर,
इस माटी परमहामुक्ति की अग्नि–गंध
ठहरो–ठहरो इन नथनों में इसको भर लूँ
अपना जनम सकारथ कर लूँ!

Sunday 29 November 2009

Friday 27 November 2009

आतंकवाद से लड़ने की पहल : 1

२३-११-२००७ में कोर्ट ब्लास्ट में घायल अधिवक्ता की आर्थिक सहायता:-



छाया चित्र चेक व स्मृति चिन्ह प्रदान करते हुए

समाचार (News) जिसको संज्ञान लेकर काशी साईं ने कोर्ट ब्लास्ट में घायल की आर्थिक सहायता करने का फैसला लिया गया


आर्थिक सहायता के चेक (Cheque) की फोटोकॉपी


आर्थिक सहायता के पत्र (letter) की फोटोकॉपी

समाचार पत्र (News Paper) में प्रकाशन हेतु

Thursday 26 November 2009

कबीर ने कहा है: भाग - 23

कबीर ने कहा है, कि.....
"कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा
बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा।"

शहीद की माँ : हरिवंशराय बच्चन

श्री बच्चन जी की यह कविता 23/11/2007 (उत्तर प्रदेश कोर्ट ब्लास्ट) 26/11/2008 (मुंबई हमला) में शहीद जवानों व भारतीयों को व उनके परिवार को शत शत नमन के साथ समर्पित है:-




इसी घर से
एक दिन
शहीद का जनाज़ा निकला था,
तिरंगे में लिपटा,
हज़ारों की भीड़ में।
काँधा देने की होड़ में
सैकड़ो के कुर्ते फटे थे,
पुट्ठे छिले थे।
भारत माता की जय,
इंकलाब ज़िन्दाबाद, (2009 में शायद यह होना चहिये "अमर शहीद जवान ज़िन्दाबाद")
अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद (2009 में शायद यह होना चहिये "आतंकवाद व भ्रष्टाचार मुर्दाबाद")
के नारों में शहीद की माँ का रोदन
डूब गया था।
उसके आँसुओ की लड़ी
फूल, खील, बताशों की झडी में
छिप गई थी,
जनता चिल्लाई थी-
तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।
गली किसी गर्व से दिप गई थी।




इसी घर से
तीस बरस बाद
शहीद की माँ का जनाजा निकला है,
तिरंगे में लिपटा नहीं,
(क्योंकि वह ख़ास-ख़ास
लोगों के लिये विहित है)
केवल चार काँधों पर
राम नाम सत्य है
गोपाल नाम सत्य है
के पुराने नारों पर;
चर्चा है, बुढिया बे-सहारा थी,
जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,
गली किसी राहत सेछुई छुई।

Kashi Sai Image : Part - 22


Thursday's Sai Vani: Part - 1

Thursday's Sai Vani:
"God is the master, None else is the master. His actions are supernatural, invaluable & full of wisdom."

Wednesday 25 November 2009

काहे ते हरि मोहिं बिसारो : तुलसीदास

काहे ते हरि मोहिं बिसारो।
जानत निज महिमा मेरे अघ, तदपि न नाथ सँभारो॥१॥
पतित-पुनीत दीन हित असुरन सरन कहत स्त्रुति चारो।
हौं नहिं अधम सभीत दीन ? किधौं बेदन मृषा पुकारो॥२॥
खग-गनिका-अज ब्याध-पाँति जहँ तहँ हौहूँ बैठारो।
अब केहि लाज कृपानिधान! परसत पनवारो फारो॥३॥
जो कलिकाल प्रबल अति हो तो तुव निदेस तें न्यारो।
तौ हरि रोष सरोस दोष गुन तेहि भजते तजि मारो॥४॥
मसक बिरंचि बिरंचि मसक सम, करहु प्रभाउ तुम्हारो।
यह सामरथ अछत मोहि त्यागहु, नाथ तहाँ कछु चारो॥५॥
नाहिन नरक परत मो कहँ डर जद्यपि हौं अति हारो।
यह बड़ि त्रास दास तुलसी प्रभु नामहु पाप न जारो॥६॥

Tuesday 24 November 2009

प्यार और ध्यान

संतमत: "ढाई आखर प्रेम के पड़े सो पंडित होई"
जगह-जगह मंदिर होते है ताकि हमें याद रहे की भगवान भी है, हम कितने भी अधार्मिक है अगर हमारे दिल में थोडा सा भी भाव है या डर है भगवान के लिए तो कही भी गली, नुक्कड़ पे कोई मंदिर दिख जाता है तो हम झुक के नमस्कार करते है।
संतो ने जगह-जगह मंदिरों की स्थापना की ताकि इसी बहाने हम झुकना सिख जाये, हम हर गुरूद्वारे, मंदिर - मस्जिद में झुकते है, हर चर्च में घुटनों के बल बैठ जाते है, घुटने टेक देते है भगवान के आगे, इस विचार धारा के साथ कि "मै नहीं तू ही है"।
तो भगवान ने जो ज्ञान उतरा था वेद-शास्त्रों में वो संस्कृत में था, ब्राम्हण को भाषा आती थी, तो उन शास्त्रों पे अधिकार हो गया ब्राम्हणों का वे अपने आप को ज्ञान के ज्ञाता कहलाने लग गए, और शोषण करने लग गए।
हर मंदिर में पंडित बैठा है, भगवान और भक्त के बीच में पंडित खड़ा है और वो ये कहता है मै जो मंतर पडूंगा, तभी तो भगवान सुनेगा।
वहा द्वारका और दुरसे तीर्थ क्षेत्रो में देखो तो पंडित घूमते रहते है की मेरे से पूजा करा लो ये-ये फल, पुण्य मिलेंगा बहोत उकसाते है और हम भी ठगे जाते है, जबकि भगवान् & भक्त के बिच पंडित का कोई काम ही नहीं है ।

Paralysed, speech affected, Advocate Mishra back in court

Paralysed, speech affected, advocate Mishra back in court:
Manish Sahu / Tags : Mishra back in court / Posted: Monday , Nov 23, 2009 at 0544 hrs Lucknow: / on .indianexpress.com <http://www.indianexpress.com/news/paralysed-speech-affected-advocate-mishra-back-in-court/545032/0>

Two years after he was crippled in the bomb blast that rocked the Varanasi local court complex on November 23, 2007, advocate Vashisht Kumar Mishra has started picking up the pieces.

Though he needs help to stand and walk, Mishra recently began attending the court. Inside the courtroom, his juniors argue cases under his guidance as he remains seated.

With the lower half of his body affected by paralysis, the explosion had also caused disorder in his nervous system — his teeth keeps chattering causing him oral injuries. To prevent it, he stuffs his mouth with pads that prevent him from talking. But slowly and steadily, his clients are returning to him — a sign that makes him hopeful about life.

“One of my colleagues, who lives close to my place, takes me to the court every morning and drops me home,” says 48-year-old Mishra. He has to make regular visits to the Banaras Hindu University Hospital and Lucknow-based Vivekanand Hospital for treatment, which includes physiotherapy.

For Mishra and his family, the worst is over and for the first time in two years, they are hopeful that he would be leading a normal life.

Since Mishra was the sole breadwinner, the injury and long treatment had hit his family hard. His daughters — Pratika Mishra, Neharika and Vartika — had to discontinue their studies. “Since there was no help, we started taking tuitions at home,” says Pratika. “Our savings were spent, I had to sell my jewellery and our ancestral land in the village to pay hospital bills,” says Mishra’s wife Urmila.

Though the government had promised to meet the medical expenses of all the victims of the court blasts, the family has received only the initial Rs 50,000 — which was spent within a month. The total medical cost that Mishra had to bear now amounts to Rs 4 lakh.

Despite submitting his bills to Varanasi District Magistrate Ajay Upadhyay and making several rounds to government offices, the family’s wait for money continues.

When The Indian Express asked about the status of Mishra’s medical bills, Upadhyay said: “We have forwarded all the bills to the state government and I have sent reminders too.”

Nevertheless, the family is getting on. “I have now started contributing money to the house. I have asked my daughters to once again start their studies,” says Mishra. While Pratika and Neharika is pursing their Masters in botany and physics, the youngest, Vartika is doing her graduation in commerce.

For Mishra, the blast was very tragic. Not only because of his own injury but also because he saw his clerk, Ajay Pandey, junior attorney Brahm Prakash Sharma and seven others die.

He was so badly injured in the blast that he slipped into coma for 28 days and had to stay in hospital for six months.

Friday 20 November 2009

पैगम्बर

पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्ल। 22 अप्रैल ईस्वी 571 को अरब में पैदा हुए। 8 जून 632 ईस्वी को आपकी वफात हुई। होनहार बिरवा के चिकने चिकने पात। बचपन में ही आपको देखकर लोग कहते, यह बच्चा एक महान आदमी बनेगा। एक अमेरिकी ईसाई लेखक ने अपनी पुस्तक में दुनिया के 100 महापुरुषों का उल्लेख किया है। इस वैज्ञानिक लेखक माइकल एच. हार्ट ने सबसे पहला स्थान हजरत मुहम्मद (सल्ल.) को दिया है। लेखक ने आपके गुणों को स्वीकारते हुए लिखा है।
आप इतिहास के एकमात्र व्यक्ति हैं, जो उच्चतम सीमा तक सफल रहे। धार्मिक स्तर पर भी और दुनियावी स्तर पर भी।
इसी तरह अँगरेज इतिहासकार टॉम्स कारलाइल ने आप सल्ल को ईशदूतों का हीरो कहा है। आइए देखें। वे क्या गुण हैं जिनके कारण आपको इतना ऊँचा स्थान दिया जाता है।
आप सल्ल, ने सबसे पहले इंसान के मन में यह विश्वास जगाया कि सृष्टि की व्यवस्था वास्तविक रूप से जिस सिद्धांत पर कायम है, इंसान की जीवन व्यवस्था भी उसके अनुकूल हो, क्योंकि इंसान इस ब्रह्मांड का एक अंश है और अंश का कुल के विरुद्ध होना ही खराबी की जड़ है। दूसरे लफ्जों में खराबी की असल जड़ इंसान की अपने प्रभु से बगावत है। आपने बताया कि अल्लाह पर ईमान केवल एक दार्शनिक सिद्धांत नहीं बल्कि यही वह बीज है, जो इंसान के मन की जमीन में जब बोया जाता है तो इससे पूरी जिंदगी में ईमान की बहार आ जाती है। जिस मन में ईमान है, वह यदि एक जज होगा तो ईमानदार होगा।
एक पुलिसमैन है तो कानून का रखवाला होगा एक व्यापारी है तो ईमानदार व्यापारी होगा। सामूहिक रूप से कोई राष्ट्र खुदापरस्त होगा तो उसके नागरिक जीवन में, उसकी राजनीतिक व्यवस्था में, उसकी विदेश राजनीति, उसकी संधि और जंग में खुदापरस्ताना अखलाक व किरदार की शान होगी। यदि यह नहीं है तो फिर खुदापरस्ती का कोई अर्थ नहीं। आइए, हम देखें कि आपकी शिक्षाएँ समाज के प्रति क्या हैं।
'जिस व्यक्ति ने खराब चीज बेची और खरीददार को उसकी खराबी नहीं बताई, उस पर ईश्वर का प्रकोप भड़कता है और फरिश्ते उस पर धिक्कार करते हैं।' 'ईमान की सर्वश्रेष्ठ हालत यह है कि तेरी दोस्ती और दुश्मनी अल्लाह के लिए हो।
तेरी जीभ पर ईश्वर का नाम हो और तू दूसरों के लिए वही कुछ पसंद करे, जो अपने लिए पसंद करता हो और उनके लिए वही कुछ नापसंद करे जो अपने लिए नापसंद करता हो।' 'ईमान वालों में सबसे कामिल ईमान उस व्यक्ति का है जिसके अखलाक सबसे अच्छे हैं और जो अपने घर वालों के साथ अच्छे व्यवहार में सबसे बड़ा है।'
'असली मुजाहिद वह है, जो खुदा के आज्ञापालन में स्वयं अपने नफ्स (अंतरआत्मा) से लड़े और असली मुहाजिर (अल्लाह की राह में देश त्यागने वाला) वह है, जो उन कामों को छोड़ दे जिन्हें खुदा ने मना किया है।'
*'मोमिन सब कुछ हो सकता है, मगर झूठा और विश्वासघात करने वाला नहीं हो सकता।' 'जो व्यक्ति खुद पेटभर खाए और उसके पड़ोस में उसका पड़ोसी भूखा रह जाए, वह ईमान नहीं रखता।''जिसने लोगों को दिखाने के लिए नमाज पढ़ी उसने शिर्क किया, जिसने लोगों को दिखाने के लिए रोजा रखा उसने शिर्क किया और जिसने लोगों को दिखाने के लिए खैरात की उसने शिर्क किया।'
'चार अवगुण ऐसे हैं कि जो यदि किसी व्यक्ति में पाए जाएँ तो वह कपटाचारी- अमानत मैं विश्वासघात करे, बोले तो झूठ बोले, वादा करे तो तोड़ दे और लड़े तो शराफत की हद से गिर जाए। 'जो व्यक्ति अपना गुस्सा निकालने की ताकत रखता है और फिर बर्दाश्त कर जाए उसके मन को खुदा ईमान से भर देता है।'
'जानते हो कयामत के दिन खुदा के साए में सबसे पहले जगह पाने वाले कौन लोग हैं। आपके साथियों ने कहा कि अल्लाह और उसका रसूल ज्यादा जानते हैं। आपने फरमाया कि उनके समक्ष सत्य पेश किया गया तो उन्होंने मान लिया और जब भी उनसे हक माँगा गया तो उन्होंने खुले मन से दिया और दूसरों के मामले में उन्होंने वही फैसला किया, जो स्वयं अपने लिए चाहते थे।'
'जन्नत में वह गोश्त नहीं जा सकता, जो हराम के निवालों से बना हो। हराम माल खाने से पहले पले हुए जिस्म के लिए तो आग ही ज्यादा बेहतर है।'
"जैसा भाव रहा जिस जन का,वैसा रूप रहा मेरे मन का" - बाबा

Thursday 19 November 2009

कबीर ने कहा है: भाग - 22

कबीर ने कहा है, कि.....
"चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय
साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो
जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी।"

Tuesday 17 November 2009

श्री साईं अमृत

श्री साईं अमृत:

सुखदायक सिद्ध साईं के नाम का अमृत पी
दुख: से व्याकुल मन तेरा भटके ना कभी
थामे सब का हाथ वो, मत होई ये भयभीत
शिरडी वाला परखता संत जनों की प्रीत
साई की करुणा के खुले शत-शत पावन द्वार
जाने किस विध हो जाये तेरा बेडा पार
जहाँ भरोसा वहाँ भला शंका का क्या काम
तु निश्चय से जपता जा साई नाम अविराम
ज्योर्तिमय साई साधना नष्ट करें अंधकार
अंतःकरण से रे मन उसे सदा पुकार
साई के दर विश्वास से सर झुका नही इक बार
किस मुँह से फिर मांगता क्या तुझको अधिकार
पग – पग काँटे बोई के पुष्प रहा तू ढूंढ
साई नाम के सादे में ऐसी नही है लूट
मीठा – मीठा सब खाते कर-कर देखो थूक
महालोभी अतिस्वार्थी कितना मूर्ख तू
न्याय शील सिद्ध साई से जो चाहे सुख भी
उसके बन्दो तू भी न्याय तो करना सीख
परमपिता सत जोत से क्यूं तूं कपट करे
वैभव उससे मांग कर उसे भी श्रद्धा दे
साई तेरी पारबन्ध के बदले है सत्यालेक
कभी मालिक की ओर तू सेवक बनकर देख
छोड़ कर इत उत छाटना भीतर के पट खोल
निष्ठा से उसे याद कर मत हो डाँवाडोल
साई को प्रीतम कह प्रीत भी मन से कर
बीना प्रीत के तार हिले मिले ना प्रिय से वर
आनन्द का वो स्त्रोत है करुना का अवतार
घट घट की वो जानता महा योगी सुखकार।

Sunday 15 November 2009

मुँशी प्रेमचन्द का जीवन परिचय (Premchand's Biography)

जन्म :-
प्रेमचन्द का जन्म ३१ जुलाई सन् १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर समही गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे।
जीवन :-
धनपतराय की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि आपके घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता करने वाला था।
शिक्षा :-
अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में आप अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया। स्कूल आने - जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहाँ ट्यूशन पकड़ लिया और उसी के घर एक कमरा लेकर रहने लगे। ट्यूशन का पाँच रुपया मिलता था। पाँच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को और दो रुपये से अपनी जिन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहे। इस दो रुपये से क्या होता महीना भर तंगी और अभाव का जीवन बिताते थे। इन्हीं जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मैट्रिक पास किया।
साहित्यिक रुचि :-
गरीबी, अभाव, शोषण तथा उत्पीड़न जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी प्रेमचन्द के साहित्य की ओर उनके झुकाव को रोक न सकी। प्रेमचन्द जब मिडिल में थे तभी से आपने उपन्यास पढ़ना आरंभ कर दिया था। आपको बचपन से ही उर्दू आती थी। आप पर नॉवल और उर्दू उपन्यास का ऐसा उन्माद छाया कि आप बुकसेलर की दुकान पर बैठकर ही सब नॉवल पढ़ गए। आपने दो - तीन साल के अन्दर ही सैकड़ों नॉवेलों को पढ़ डाला। आपने बचपन में ही उर्दू के समकालीन उपन्यासकार सरुर मोलमा शार, रतन नाथ सरशार आदि के दीवाने हो गये कि जहाँ भी इनकी किताब मिलती उसे पढ़ने का हर संभव प्रयास करते थे। आपकी रुचि इस बात से साफ झलकती है कि एक किताब को पढ़ने के लिए आपने एक तम्बाकू वाले से दोस्ती करली और उसकी दुकान पर मौजूद "तिलस्मे - होशरुबा" पढ़ डाली।अंग्रेजी के अपने जमाने के मशहूर उपन्यासकार रोनाल्ड की किताबों के उर्दू तरजुमो को आपने काफी कम उम्र में ही पढ़ लिया था। इतनी बड़ी - बड़ी किताबों और उपन्यासकारों को पढ़ने के बावजूद प्रेमचन्द ने अपने मार्ग को अपने व्यक्तिगत विषम जीवन अनुभव तक ही महदूद रखा।तेरह वर्ष की उम्र में से ही प्रेमचन्द ने लिखना आरंभ कर दिया था। शुरु में आपने कुछ नाटक लिखे फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना आरंभ किया। इस तरह आपका साहित्यिक सफर शुरु हुआ जो मरते दम तक साथ - साथ रहा।
व्यक्तित्व :-
सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचन्द सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाजी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा "हमारा काम तो केवल खेलना है- खूब दिल लगाकर खेलना- खूब जी- तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे। किन्तु हारने के पश्चात् - पटखनी खाने के बाद, धूल झाड़ खड़े हो जाना चाहिए और फिर ताल ठोंक कर विरोधी से कहना चाहिए कि एक बार फिर जैसा कि सूरदास कह गए हैं, "तुम जीते हम हारे। पर फिर लड़ेंगे।" कहा जाता है कि प्रेमचन्द हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्यता और उदारता के वह मूर्ति थे।
जहां उनके हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं उनके हृदय में गरीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। जैसा कि उनकी पत्नी कहती हैं "कि जाड़े के दिनों में चालीस - चालीस रुपये दो बार दिए गए दोनों बार उन्होंने वह रुपये प्रेस के मजदूरों को दे दिये। मेरे नाराज होने पर उन्होंने कहा कि यह कहां का इंसाफ है कि हमारे प्रेस में काम करने वाले मजदूर भूखे हों और हम गरम सूट पहनें।"
प्रेमचन्द उच्चकोटि के मानव थे। आपको गाँव जीवन से अच्छा प्रेम था। वह सदा साधारण गंवई लिबास में रहते थे। जीवन का अधिकांश भाग उन्होंने गाँव में ही गुजारा। बाहर से बिल्कुल साधारण दिखने वाले प्रेमचन्द अन्दर से जीवनी-शक्ति के मालिक थे। अन्दर से जरा सा भी किसी ने देखा तो उसे प्रभावित होना ही था। वह आडम्बर एवं दिखावा से मीलों दूर रहते थे। जीवन में न तो उनको विलास मिला और न ही उनको इसकी तमन्ना थी। तमाम महापुरुषों की तरह अपना काम स्वयं करना पसंद करते थे।
ईश्वर के प्रति आस्था :-
जीवन के प्रति उनकी अगाढ़ आस्था थी लेकिन जीवन की विषमताओं के कारण वह कभी भी ईश्वर के बारे में आस्थावादी नहीं बन सके। धीरे - धीरे वे अनीश्वरवादी से बन गए थे। एक बार उन्होंने जैनेन्दजी को लिखा "तुम आस्तिकता की ओर बढ़े जा रहे हो - जा रहीं रहे पक्के भग्त बनते जा रहे हो। मैं संदेह से पक्का नास्तिक बनता जा रहा हूँ।"
मृत्यू के कुछ घंटे पहले भी उन्होंने जैनेन्द्रजी से कहा था - "जैनेन्द्र, लोग ऐसे समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद दिलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।"
प्रेमचन्द की कृतियाँ :-
प्रेमचन्द ने अपने नाते के मामू के एक विशेष प्रसंग को लेकर अपनी सबसे पहली रचना लिखी। १३ साल की आयु में इस रचना के पूरा होते ही प्रेमचन्द साकहत्यकार की पंक्ति में खड़े हो गए। सन् १८९४ ई० में "होनहार बिरवार के चिकने-चिकने पात" नामक नाटक की रचना की। सन् १८९८ में एक उपन्यास लिखा। लगभग इसी समय "रुठी रानी" नामक दूसरा उपन्यास जिसका विषय इतिहास था की रचना की। सन १९०२ में प्रेमा और सन् १९०४-०५ में "हम खुर्मा व हम सवाब" नामक उपन्यास लिखे गए। इन उपन्यासों में विधवा-जीवन और विधवा-समस्या का चित्रण प्रेमचन्द ने काफी अच्छे ढंग से किया।
जब कुछ आर्थिक निर्जिंश्चतता आई तो १९०७ में पाँच कहानियों का संग्रह सोड़ो वतन (वतन का दुख दर्द) की रचना की। जैसा कि इसके नाम से ही मालूम होता है, इसमें देश प्रेम और देश को जनता के दर्द को रचनाकार ने प्रस्तुत किया। अंग्रेज शासकों को इस संग्रह से बगावत की झलक मालूम हुई। इस समय प्रेमचन्द नायाबराय के नाम से लिखा करते थे। लिहाजा नायाब राय की खोज शुरु हुई। नायाबराय पकड़ लिये गए और शासक के सामने बुलाया गया। उस दिन आपके सामने ही आपकी इस कृति को अंग्रेजी शासकों ने जला दिया और बिना आज्ञा न लिखने का बंधन लगा दिया गया।
इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचन्द ने दयानारायण निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी नयाबराय या धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार प्रेमचन्द नाम सुझाया। यहीं से धनपतराय हमेशा के लिए प्रेमचन्द हो गये।
"सेवा सदन", "मिल मजदूर" तथा १९३५ में गोदान की रचना की। गोदान आपकी समस्त रचनाओं में सबसे ज्यादा मशहूर हुई अपनी जिन्दगी के आखिरी सफर में मंगलसूत्र नामक अंतिम उपन्यास लिखना आरंभ किया। दुर्भाग्यवश मंगलसूत्र को अधूरा ही छोड़ गये। इससे पहले उन्होंने महाजनी और पूँजीवादी युग प्रवृत्ति की निन्दा करते हुए "महाजनी सभ्यता" नाम से एक लेख भी लिखा था।
मृत्यु :-
सन् १९३६ ई० में प्रेमचन्द बीमार रहने लगे। अपने इस बीमार काल में ही आपने "प्रगतिशील लेखक संघ" की स्थापना में सहयोग दिया। आर्थिक कष्टों तथा इलाज ठीक से न कराये जाने के कारण ८ अक्टूबर १९३६ में आपका देहान्त हो गया। और इस तरह वह दीप सदा के लिए बुझ गया जिसने अपनी जीवन की बत्ती को कण-कण जलाकर भारतीयों का पथ आलोकित किया।

Saturday 14 November 2009

HAZRAT NIZAMUDDIN

Hazrat Nizamuddin is very popular even today, died at the age of 82 in April 1325 CE and witnessed ruling of thirteen rulers ascend the throne of Delhi. The shaikh's ancestors were migrated from Bukhara in Uzbekistan to Badayun in UP following the troubles from the Mongols. Thus a privileged family became in total poverty. The Shaikh's father died early and the widowed mother used to say"Nizamuddin, today we are the guests of God," which meant there was nothing to eat in the house.

Nizamuddin travelled to Delhi and made his asram at now known as Nizamuddin. His many devotees included the rich, poor, learned, illiterate, villagers, soldiers, Hindus and Muslims. His kitchen supplied food to thousands of people every day.Provisions for the kitchen were not kept for than a week. The Shaikh ate rarely, tearfully confessing the trouble he had swallowing food when there were countless people starving in Delhi.

One hot day in summer, some houses in the neighbourhood caught fire. Barefooted, the Shaikh rushed to the site, standing there until the fire was completely doused. He personally counted the houses that had been burnt and appointed his deputy to compensate the affected families with two silver coins, food and water.

Nizamuddin believed that although many ways to lead to the God, none was more effective than bringing happiness to the human heart. The shaikh also taught that happiness was not in amazing wealth but distributing it. The Shaikh also preached that revenge is the law of jungle."If a man puts a thorn in your way and you also put thorn in his way, there will be thorns everywhere."

Nizamuddin desired to be buried under the open sky.But Sultan Mohammad Bin Tughlaq built a dome over his grave. Hearing the loss of his mentor on returning from Bengal, his devotee, the poet Amir Khusrau, tore his clothes, blackened his face and re- cited his last verse,


"Gori sove sej per much par dhar khes
chal Khusrau ghar aapne, rain bhare sab des"

Friday 13 November 2009

जो बीत गई सो बात गयी : हरिवंशराय बच्चन

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फ़िर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियां
मुरझाईं कितनी वल्लरियां
जो मुरझाईं फ़िर कहां खिली
पर बोलो सूखे फ़ूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फ़ूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

Thursday 12 November 2009

कबीर ने कहा है : भाग - 21

कबीर ने कहा है, कि...
"आया है किस काम को किया कौन सा काम
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी
मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी।"

Tuesday 10 November 2009

आज़ादी के दीवाने : चन्द्रशेखर आजाद

ऐसे थे चन्द्रशेखर
एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते हुए चन्द्रशेखर आजाद से कहा, ‘पंडित जी, हम क्रान्तिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।'

चन्द्रशेखर सकते में आ गए और कहने लगेल, ‘पार्टी का कार्यकर्ता मैं हूँ, मेरा परिवार नहीं। उनसे तुम्हें क्या मतलब? दूसरी बात, ‘उन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है और न ही मुझे जीवनी लिखवानी है। हम लोग नि:स्वार्थभाव से देश की सेवा में जुटे हैं, इसके एवज में न धन चाहिए और न ही ख्याति।

आजाद :-
तुम्हारा नाम?
'आजाद'
बाप का नाम?
'स्वाधीनता'
घर?
'जेलखाना!’

अँग्रेज जज गुस्से से दांत पिसने लगा। अदालत में पेश किया गया, यह निडर नौजवान था - अमर शहीद 'चन्द्रशेखर आजाद।'

Saturday 7 November 2009

मौत तू एक कविता है : गुलज़ार

मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन

जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

(इस कविता को हिन्दी फ़िल्म "आनंद" में डा. भास्कर बैनर्जी के लिये लिखा गया था। इस चरित्र को फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ने निभाया था)

Thursday 5 November 2009

कबीर ने कहा है : भाग - 20

कबीर ने कहा है, कि....
"माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला

धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो।"

Tuesday 3 November 2009

मुझको भी तरकीब सिखा कोई, यार जुलाहे : गुलज़ार

मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ
फिर से बाँध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ गिरह बुनतर की
देख नहीं सकता है कोई
मैंने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे

Saturday 31 October 2009

Kashi Sai Image : Part - 15


Vivekananda Quote - 11

Death is only a change of condition. Time and space are in you; you are not in timeand space. It is enough to know that as we make our lives purer and nobler, eitherin the seen or the unseen world, the nearer we approach God, who is the center of all spiritual beauty and eternal joy.

Conversation at the Brooklyn Ethical Society, USA. Complete Works, 5.313.

Thursday 29 October 2009

Kashi Sai Image : Part - 13


Vivekananda Quote - 10

Our pessimism is a dread reality, our optimism is a faint cheering, making the bestof a bad job.

From notes discovered among Swami Vivekananda's papers. He evidently intendedto write a book and jotted down these points for the work. Complete Works, 5:430

Wednesday 28 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 204

साईं ने कहा है, कि.......
"मेरे बिना भक्त के लिए संपूर्ण विश्व ही उजाड़ है, वह केवल मेरी कथाओ का ही गुणगान करते है।"

Vivekananda Quote - 9

Make the heart like an ocean, go beyond all the trifles of the world, be mad withjoy even at evil. See the world as a picture and then enjoy its beauty, knowingthat nothing affects you.

Retreat given at the Thousand Island Park, USA. June 25, 1895. Complete Works, 7.13

Tuesday 27 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 203

साईं ने कहा है, कि.....
"प्रेम और श्रद्धा भाव से किया गया, केवल एक नमस्कार ही प्रयाप्त है।"

Vivekananda Quote - 8

I propound a philosophy which can serve as a basis to every possible religious system in the world, and my attitude toward all of them is one of extreme sympathy-my teaching is antagonistic to none. I direct my attention to the individual, to make them strong, to teach them that they are divine, and I call upon them to make themselves conscious of the divinity within. That is really the ideal conscious or unconscious of every religion.

Interview, October 23, 1895. Complete Works, 5: 187-88.

Monday 26 October 2009

साईं नामावली:-

साईं नामावली:-
१- अन्तकमर्दन साईं नाथ.
२- अंतसहाय साईं नाथ.
३- आप्रमेया साईं नाथ.
४- अमितपराक्रम साईं नाथ.
५- आनंदामृत साई नाथ.
६- आश्रित रक्षक साई नाथ.
७- सहिर्दी वासा साई नाथ.
८- श्री हरि रूपा साई नाथ.
९- द्वान्द विनाशा साईं नाथ.
१०- द्वारका वासा साईं नाथ.
११- तत्त्व बोधक साईं नाथ.
१२- दक्षिणा मूर्ति साईं नाथ.
१३- धर्म सुपालन साईं नाथ.
१४- दारिद्र नाशन साईं नाथ.
१५- दिव्या गुणालय साईं नाथ.
१६- तीर्थ पादा साईं नाथ.
१७- नित्यानन्दा साईं नाथ.
१८- निर्मल रूपा साईं नाथ.
१९- निर्जित कामा साईं नाथ.
२०- नित्य महोत्सव साईं नाथ.
२१- भक्त वत्सल साईं नाथ.
२२- भगवत प्रिय साईं नाथ.
२३- पुराण पुरुषा साईं नाथ.
२४- पुण्य शलोका साईं नाथ.
२५- संकट हरणा साईं नाथ.
२६- सर्व मताश्रय साईं नाथ.
२७- सच्चिदानन्दा साईं नाथ.
२८- समर्थ सदगुरु साईं नाथ.

साईं ने कहा है : भाग - 202

साईं ने कहा है, कि.....
"मुझे ही अपने विचारो व इच्छाओं का लक्ष्य बनाओ, तुम्हे परमार्थ की प्राप्ति होगी।"

Vivekananda Quote - 7

"Fools alone say that work and philosophy are different, not the learned" (Gita,5.4). The learned know that, though apparently different from each other, theyat last lead to the same goal of human perfection.

Class on Karma Yoga. New York, January 3, 1896. Complete Works, 1.93.

Sunday 25 October 2009

Kashi Sai Image : Part - 12


साईं ने कहा है : भाग - 201

साईं ने कहा है, कि....
"मस्जिद माई अपना ऋण मांगती है, इसलिए देनेवाला अपना ऋण चुकता कर मुक्त हो जाते है।"

Vivekananda Quote - 6

We are not individuals now, in our present earthly environment. We shall not havereached individuality until we shall have ascended to the higher state, when thedivine spirit within us will have a perfect medium for the expression of its attributes.

Conversation at the Brooklyn Ethical Society, USA. Complete Works, 5: 312-13.

Saturday 24 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 200

साईं ने कहा है, कि.....
"यदि प्राप्ति की आशा करते हो तो अभी दान करो।"

Friday 23 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 199

साईं ने कहा है, कि....
"दानी दान देता है और भविष्य में सुंदर उपज का बीजारोपण करता है।"

Thursday 22 October 2009

साईं तेरी नोकरी मुझे चाहिए:-

तेरी नोकरी मुझे चाहिए
हे साईं अभिराम चाकर मुझे बना लो,दे दो
श्री चरणों में स्थान
ड्यूटी मुझको देदो
बचा समये जो इस जीवन का
निज सेवा में लेलो
वेतन में तुम मुझको देना
श्रदा और सबुरी
इतना वेतन हो की स्वामी
तुमसे न हो दुरी
बीमारी के छुट्टी (Sick Leave) मुझे नहीं चाहिए
अपने नाम कर लेना
किराया भत्ता व महगाई भत्ता (T.A. & D.A.) जब हो जाये
कभी ड्यू जो मेरा
शिर्डी धाम का लगवा देना
साईं तुम की फेरा
उन्नति (Appraisal) के समये में दाता
मेरे दोष निरखना
लेश मात्र भी कमी जो पाओ
बर्खास्त (Demotion) चाहे करना
जैसे कर्म हो मेरे,वैसे
फल से झोली भरना
बोनस (Bonus) में मुझको दे देना
दर्शन अपना प्यारा
तेरी नोकरी में ही बीते
मेरा जीवन सारा
पदौन्नति (Promotion) जब भी करना चाहो
तब इतना ही करना
भक्ति की ऊँची सीढ़ी पर
साईं मुझको धरना
सेवा से अवकाश (Retirement) का समये जो आवे
तुम खुद ही आ जाना
इस जिव को दाता अपने संग
तुम्ही ले जाना
अर्जी मैंने डाला है, तुम
इस पर करो विचार
तेरी नोकरी पा जाऊँ तो
हो जावे उद्धार

साईं ने कहा है : भाग - 198

साईं ने कहा है, कि.....
"पिछले जन्मो के कर्मफल को भोग लेना ही मुक्ति का साधन है।"

Vivekananda Quote - 5

Good and evil are our slaves, not we theirs. It is the nature of the brute to remainwhere he is and not make progress. It is the nature of man to seek good and avoidevil. It is the nature of God to seek neither but just be eternally blissful. Letus be God!

Retreat given at the Thousand Island Park, USA. June 25, 1895. Complete Works, 7.13.

Wednesday 21 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 197

साईं ने कहा है, कि....
"द्वारकामाई अपने बच्चो को हर प्रकार कि खतरे व चिंता से दूर रखती है।"

Vivekananda Quote - 4

There are many things to be done, but means are wanting in this country [India].We have brains but no hands. We have the doctrine of Vedanta, but we have not thepower to put it into practice. In our books there is the doctrine of universal equality,but in work we make great distinctions. It was in India that unselfish and disinterested work of the most exalted type was preached, but in practice we are awfully cruel, awfully heartless--unable to think of anything besides our own mass-of-flesh bodies.

Letter to Sarala Ghoshal, Editor of Bharati. Written from Darjeeling on April 6, 1897. Complete Works,5.126-27.

Tuesday 20 October 2009

Kashi Sai Image : Part - 11


साईं ने कहा है : भाग - 196

साईं ने कहा है, कि.....
"जो प्रेम और भक्ति के साथ ईश्वर का ध्यान करते है, प्रभु उनकी सदा सहायता करते है।"

Vivekananda Quote - 3

We are struggling hard to conquer pain, succeeding in the attempt,and yet creating new pains at the same time.

From notes discovered among Swami Vivekananda's papers. He evidently intended to write a book and jotted down these points for the work. Complete Works, 5:429.

Monday 19 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 195

साईं ने कहा है, कि.....
"जो व्यक्ति अपनी बुद्धि द्वारा मन को वश में कर लेते है, वे अंत में लक्ष्य प्राप्त कर विष्णु लोक में पहुच जाते है।"

साईं ने कहा है : भाग - 194

साईं ने कहा है, कि.....
"आत्मज्ञान के लिए ध्यान आवयशक है।"

Vivekananda Quote - 2

Each of the four yogas is fitted to make us perfect even without the help of the others, because they have all the same goal in view. The yogas of work (karma), of wisdom (jñāna), and of devotion (bhakti) are all capable of serving as direct and independent means for the attainment of spiritual freedom (mokṣa).

Class on Karma Yoga. New York, January 3, 1896. Complete Works, 1.93.

Sunday 18 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 193

साईं ने कहा है, कि.....
"अहंकारी और विषयो में लिप्त व्यक्ति पर गुरु के उपदेशो तथा शिक्षा का कोई प्रभाव नही पड़ता।"

Vivekananda Quote - 1

Why are millions trampled underfoot? Why do people starve who never did anything to cause it? Who is responsible? If they had no hand in it, surely, God would be responsible. Therefore the better explanation is that one is responsible for themisery one suffers. If I set the wheel in motion, I am responsible for the result.And if I can bring misery, I can also stop it. It necessarily follows that we arefree. There is no such thing as fate. There is nothing to compel us. What we havedone, we can undo.
Talk given at Unity Hall, Hartford (Connecticut), USA, on March 8, 1895,as reported in "Hartford Times" (March 11, 1895). Complete Works, 1.320.

Saturday 17 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 192

साईं ने कहा है, कि......
"धन के प्रति प्रेम, दुःख का गहरा भवर है, केवल इच्छा रहित व्यक्ति इस भवर को पर कर सकता है।"

शुभ दीपावली - 2009


Friday 16 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 191

साईं ने कहा है, कि......
"आत्मानुभूति ना तो बुद्धि द्वारा और ना सूक्ष्म वेद अध्यन द्वारा सम्भव है, जिनपर ईश्वर कृपा होती है, केवल वे ही इसे प्राप्त करते है।"

Thursday 15 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 190

साईं ने कहा है, कि.....
"आत्मज्ञान गूढ़ और रहस्यमय है, केवल अपने प्रयत्नं से उसकी प्राप्ति सम्भव नही, सिद्ध गुरु की सहायता परम आवश्यक है।"

महिलाओ का सदैव सम्मान करे


Wednesday 14 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 189

साईं ने कहा है, कि.....
"मैं शरीर हूँ एक भ्रम है और यही बंधन का कारण है, जीवन का धेय प्राप्त करने के लिए इस धारणा को त्याग कर दो।"

Tuesday 13 October 2009

Monday 12 October 2009

आज़ादी के दीवाने : रामप्रसाद बिस्मिल

रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र:-

शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -
"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"
यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी।तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो।कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो।।
मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से।होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से।।उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का।तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का।।

सब से मेरा नमस्कार कहिए,

तुम्हारा
बिस्मिल"



रामप्रसाद बिस्मिल की शायरी, जो उन्होने कालकोठरी में लिखी और गाई थी, उसका एकट-एक शब्द आज भी भारतीय जनमानस पर उतना ही असर रखता है जितना उन दिनो रखता था। बिस्मिल की निम्न शायरी का हर शब्द अमर है:

सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजुए कातिल में है।।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।।

और:

दिन खून के हमारे, यारो न भूल जाना
सूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।

साईं ने कहा है : भाग - 187

साईं ने कहा है, कि.....
"ब्रह्मज्ञान या आत्मानुभूति का मार्ग सरल नही, वह तो तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है।"

Sunday 11 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 186

साईं ने कहा है, कि.....
"सांसारिक वस्तुओ की अभिलाषा करने वालो का अभाव नही, ब्रह्मज्ञान को पानेवाले आध्यात्मिक जिज्ञासु दुर्लभ है।"

Saturday 10 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 185

साईं ने कहा है। कि....
"वो ही भाग्यशाली मेरी उपासना की ओर अग्रसर होते है, जिनके समस्त पाप नष्ट हो गए हो।"

Friday 9 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 184

साईं ने कहा है, कि.....
"माया ब्रह्माद्दी को भी नही छोडती, फिर मुझ जैसे फकीर का तो क्या कहना? परन्तु जो हरि की शरण लेगे वे मायाजाल से मुक्त हो जायेंगे।"

Thursday 8 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 183

साईं ने कहा है, कि.....
"मेरा नाम स्मरण करने से, बोलने और सुनने से किए गए पाप कर्मो का अंत होता है।"

Wednesday 7 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 182

साईं ने कहा है, कि
"मेरे भक्तो के घर अन्न तहत वस्त्रो का कभी आभाव नही होगा।"

Tuesday 6 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 181

साईं ने कहा है, कि.....
मुझ पर दृढ़ विश्वास रखने वाले भक्तो का अहंकार व द्वेष भव समाप्त हो जाता है।"

Monday 5 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 180

साईं ने कहा है, कि.....
"मैं सभी को एक नज़र से देखता हूँ."

Sunday 4 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 179

साईं ने कहा है, कि.....
"अच्छे लोगो का साथ सत्संग है, बुरे लोगो का साथ दुसंग है, जिससे सदा दूर रहो।"

Saturday 3 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 178

साईं ने कहा है, कि....
"हम इस शरीर कि मालिक नही है, यह तो हमे ईश्वर की सेवा करने के लिए प्राप्त हुआ है।"

Friday 2 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 177

साईं ने कहा है, कि....
"अगर तुम भूखे को भोजन, प्यासे को पानी और निर्वस्त्र को वस्त्र दोगे तो श्री हरि प्रस्सन होंगे।"

सूचना

प्रिय मित्रो,
जय साईं भारत......
हम आप सभी ब्लॉग के पाठको से ब्लॉग अपडेट ना होने के लिए क्षमा चाहते हैं। जल्द ही आपके ब्लॉग पर नए अपडेट के साथ फिर से हम सभी की प्रेम भरी मुलाकात होगी।
तब तक के लिए जय साईं भारत......
आप सभी का आभारी
अंशुमान दुबे व काशी साईं परिवार

Thursday 1 October 2009

साईं ने कहा है : भाग - 176

साईं ने कहा है, कि....
"सदा अपने स्थान पर दृढ़ रहकर गतिमान दृश्य को शांतिपूर्वक देखो, क्यो भटकते हो। साईं तुम्हारा परित्याग नही करेंगे।"

साईं महिमा : भाग - 1

~~~ॐ सांई राम~~~


है भरोसा सांई पर

उसकी रहमत बरसती है

साईं की रहम नज़र

सदा हम सब पर रहती है

रख भरोसा साईं पर

किए जा अपना काम

लेकर साईं का नाम शुभ

बस करे जा अपना काम

फिर देख नज़ारे साईं के

और उसकी रहमत की


~~~ जय सांई राम~~~

Wednesday 30 September 2009

तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब : मोमिन

तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
कहीं साया मेरा पड़ा साहब

है ये बन्दा ही बेवफ़ा साहब
ग़ैर और तुम भले भला साहब

क्यों उलझते हो जुम्बिशे-लब से
ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब

क्यों लगे देने ख़त्ते-आज़ादी
कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब

दमे-आख़िर भी तुम नहीं आते
बन्दगी अब कि मैं चला साहब

सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरो-जफ़ा
जो किया सो भला किया साहब

किससे बिगड़े थे,किसपे ग़ुस्सा थे
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब

किसको देते थे गालियाँ लाखों
किसका शब ज़िक्रे-ख़ैर था साहब

नामे-इश्क़े-बुताँ न लो 'मोमिन'
कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब

कठिन शब्दों के अर्थ:
ख़फ़ा: नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब: होंटो का हिलना, ख़त्ते-आज़ादी: आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़, दमे-आख़िर: अंतिम समय, ज़िक्रे-ख़ैर: बखान, नामे-इश्क़े-बुताँ: हसीनों के प्रेम का नाम

बीत गये दिन भजन बिना रे : संत कबीर

बीत गये दिन भजन बिना रे ।
भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥

बाल अवस्था खेल गवांयो ।
जब यौवन तब मान घना रे ॥

लाहे कारण मूल गवाँयो ।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥

कहत कबीर सुनो भई साधो ।
पार उतर गये संत जना रे ॥

साईं ने कहा है : भाग - 175

साईं ने कहा है, कि.....
"अपने वचन का पालन करने के लिए मैं अपने जीवन को भी न्योछावर कर सकता हूँ।"

Tuesday 29 September 2009

बाबा की बेटी का प्यार:

बाबा की बेटी का प्यार:

साईं ने कहा है : भाग - 174

साईं ने कहा है, कि....
"मानवता ही मनुष्य की सबुरी (धैर्य) है,
धैर्य धारण करने से समस्त पाप और मोह नष्ट हो जाते है।"

Monday 28 September 2009

सुपने में साईं मिले : संत कबीर

सुपने में साईं मिले
सोवत लिया लगाए
आंख न खोलूं डरपता
मत सपना है जाए
साईं मेरा बहुत गुण
लिखे जो हृदय माहिं
पियूं न पाणी डरपता
मत वे धोय जाहिं
नैना भीतर आव तू
नैन झांप तोहे लेउं
न मैं देखूं और को
न तेही देखण देउं

नैना अंतर आव तू
ज्यौ हौं नैन झंपेउं
ना हौं देखूं और कूँ
ना तुम देखण देउं
कबीर रेख सिंदूर की
काजर दिया न जाइ
नैनू रमैया रमि रह्या
दूजा कहॉ समाइ
मन परतीत न प्रेम रस
ना इत तन में ढंग
क्या जानै उस पीवसू
कैसे रहसी रंग
अंखियां तो छाई परी
पंथ निहारि निहारि
जीहड़ियां छाला परया
नाम पुकारि पुकारि
बिरह कमन्डल कर लिये
बैरागी दो नैन
मांगे दरस मधुकरी
छकै रहै दिन रैन
सब रंग तांति रबाब तन
बिरह बजावै नित
और न कोइ सुनि सकै
कै सांई के चित

भारत की माँ : मदर टेरेसा के सम्मान में....

भारत की माँ : मदर टेरेसा के सम्मान में....

साईं ने कहा है : भाग - 173

साईं ने कहा है, कि...
"सबुरी (सब्र) तुम्हे इस भव सागर से पार उतार देगी।"

Sunday 27 September 2009

माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ : संत कुम्भनदास

माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ : संत कुम्भनदास

"माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ।
मेरे तो ब्रत यहै निरंतर, और न रुचि उपजाऊँ ॥
खेलन ऑंगन आउ लाडिले, नेकहु दरसन पाऊँ।
'कुंभनदास हिलग के कारन, लालचि मन ललचाऊँ ॥

साईं ने कहा है : भाग - 172

साईं ने कहा है, कि.....
"कोई कितना भी दुखित और पीड़ित क्यो ना हो, जैसे ही वह मस्जिद की सीढियों पे पैर (चरण) रखता है वह सुखी हो जाता है।"

Saturday 26 September 2009

देख जिऊँ माई नयन रँगीलो : संत कृष्णदास

देख जिऊँ माई नयन रँगीलो : संत कृष्णदास

"देख जिऊँ माई नयन रँगीलो।
लै चल सखी री तेरे पायन लागौं,
गोबर्धन धर छैल छबीलो॥
नव रंग नवल, नवल गुण नागर,
नवल रूप नव भाँत नवीलो।
रस में रसिक रसिकनी भौहँन,
रसमय बचन रसाल रसीलो॥
सुंदर सुभग सुभगता सीमा,
सुभ सुदेस सौभाग्य सुसीलो।
'कृष्णदास प्रभु रसिक मुकुट मणि,
सुभग चरित रिपुदमन हठीलो॥"

साईं ने कहा है : भाग - 171

साईं ने कहा है, कि......
"यदि कुछ मांगना है तो ईश्वर से मांगो, सांसारिक मान व उपाधियाँ त्याग दो,
ईश्वर की कृपा तथा अभयदान प्राप्त करने का प्रयास करो।"

Friday 25 September 2009

सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल : संत छीतस्वामी

सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल : संत छीतस्वामी

"सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल,
मिटिहैं जंजाल सकल निरखत सँग गोप बाल।
मोर मुकुट सीस धरे, बनमाला सुभग गरे,
सबको मन हरे देख कुंडल की झलक गाल॥
आभूषन अंग सोहे, मोतिन के हार पोहे,
कंठ सिरि मोहे दृग गोपी निरखत निहाल।
'छीतस्वामी' गोबर्धन धारी कुँवर नंद सुवन,
गाइन के पाछे-पाछे धरत हैं चटकीली चाल॥"

साईं ने कहा है : भाग - 170

साईं ने कहा है, कि......
"धनवान के लिए धन का महत्व तभी है, जब वह उसे धर्म और दान में कर्च करे।"

Thursday 24 September 2009

मेरे देश के लाल : बालकवि बैरागी

पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान
कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान
सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान

आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

दूध-दही की नदियां जिसके आँचल में कलकल करतीं
हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती
हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं
उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती

रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी
विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी
मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी
अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी

ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

जहाँ पढाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना
जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना
जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना
बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना

उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

साईं ने कहा है : भाग - 169

साईं ने कहा है, कि.....
"अपनी चतुराई पर विश्वास कर तुम रास्ता भटक गए,
सही रास्ता दिखने के लिए पाठ प्रदर्शक गुरु आवश्यक है।"

Wednesday 23 September 2009

भक्तन को कहा सीकरी सों काम : संत कुम्भनदास

भक्तन को कहा सीकरी सों काम : संत कुम्भनदास
"भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पन्हैया टूटी बिसरि गये हरि नाम॥
जाको मुख देखे अघ लागै करन परी परनाम॥
'कुम्भनदास' लाल गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम॥"

साईं ने कहा है : भाग - 168

साईं ने कहा है, कि.....
"निषेध भोजन और पेय पदार्थो का सेवन न करे।"

Tuesday 22 September 2009

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ : संत कबीर

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ ॥
पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ ।
काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ १॥
दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ २॥
बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ ।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ, माँगे भीख न पैहौ ॥ ३॥
तेली के घर बैला होइहौ, आखिन ढाँपि ढॅंपैहौउ ।
कोस पचास घरै माँ चलिहौ, बाहर होन न पैहौ ॥ ४॥
पॅंचवा जनम ऊँट का पैहौ, बिन तोलन बोझ लदैहौ ।
बैठे से तो उठन न पैहौ, खुरच खुरच मरि जैहौ ॥ ५॥
धोबी घर गदहा होइहौ, कटी घास नहिं पैंहौ ।
लदी लादि आपु चढि बैठे, लै घटे पहुँचैंहौ ॥ ६॥
पंछिन माँ तो कौवा होइहौ, करर करर गुहरैहौ ।
उडि के जय बैठि मैले थल, गहिरे चोंच लगैहौ ॥ ७॥
सत्तनाम की हेर न करिहौ, मन ही मन पछितैहौउ ।
कहै कबीर सुनो भै साधो, नरक नसेनी पैहौ ॥ ८॥

साईं ने कहा है : भाग - 167

साईं ने कहा है, कि......
"मुझे ही अपनी दृष्टि, ध्यान और मनन का केन्द्र बना लो, तुम्हे बहुत लाभ होगा।"

Monday 21 September 2009

इंशा जी उठो अब कूच करो : इंशा अल्लाह खां

"इंशा" जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी का लगाना क्या,
वहशी को सुकूँ से क्या मतलब, जोगी का नगर में ठिकाना क्या।

इस दिल के दरीदा-दामन को देखो तो सही, सोचो तो सही,
जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली को फैलाना क्या।

शब बीती चांद भी डूब गया ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में,
क्यों देर गये घर आये हो सजनी से करोगे बहाना क्या।

उस हुस्न के सुच्चे मोती को हम देख सकें पर छू न सकें,
जिसे देख सकें पर छू न सकें वो दौलत क्या वो ख़ज़ाना क्या।

उस को भी जला दुखते हुए मन इक शोला लाल भभूका बन,
यूँ आँसू बन बह जाना क्या यूँ माटी में मिल जाना क्या।

जब शहर के लोग न रस्ता देखे क्यों वन में न जा विश्राम करे,
दीवानों की-सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या।

रहना नहिं देस बिराना है : संत कबीर

रहना नहिं देस बिराना है।
यह संसार कागद की पुडिया,
बूँद पडे गलि जाना है।
यह संसार काँटे की बाडी,
उलझ पुलझ मरि जाना है॥

यह संसार झाड और झाँखर,
आग लगे बरि जाना है।
कहत 'कबीर सुनो भाई साधो,
सतुगरु नाम ठिकाना है॥

साईं ने कहा है : भाग - 166

साईं ने कहा है, कि.....
"हमे ईश्वर की लीलाओ में पूर्ण विश्वास रखना चाइए।"
जय साईं भारत......!!
सभी भारत प्रेमियों को ईद मुबारक....!!
जय साईं भारत......!!


Sunday 20 September 2009

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै : संत कबीर

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै।
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।
सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥

जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा : टोडर

जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा,
गदहा को पान कहा आँधरे को आरसी।
निगुनी को गुन कहा दान कहा दारिदी को,
सेवा कहा सूम को अरँडन की डार सी।
मदपी की सुचि कहा साँच कहा लम्पट को,
नीच को बचन कहा स्यार की पुकार सी।
टोडर सुकवि ऎसे हठी ते न टारे टरे,
भावै कहो सूधी बात भावै कहो फारसी।

( Note : टोडर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। )

साईं ने कहा है : भाग - 165

साईं ने कहा है, कि.....
"जिसने ब्रम्ह को समर्पण कर दिया हो, वह सभी प्राणियों में ईश्वर का दर्शन करता है।"

Saturday 19 September 2009

बहुरि नहिं आवना या देस : संत कबीर

बहुरि नहिं आवना या देस ॥
जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नाहिं सॅंस ॥ १॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस ॥ २॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ॥ ३॥
जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस ॥ ४॥
चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस ॥ ५॥
ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस ॥ ६॥
कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस ॥ ७॥
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूऊंढि फिरें चहुँ देस ॥ ८॥
कहै कबीर अंत ना पैहो, बिन सतगुरु उपदेश ॥ ९॥

साईं ने कहा है : भाग - 164

साईं ने कहा है, कि.....
"राम और रहीम को एक मनो और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करो।"

शुभ नवरात्री "जय माता दी"


"जय साईं भारत"


जो जाता है माँ के द्वार, उसे मिलता है माँ का प्यार।
प्यार से जो कहता "जय माता दी" उसे मिल ही जाते है,
किसी ना किसी रूप में उनका दीदार।
जय माता दी।


"जय साईं भारत"

Friday 18 September 2009

रहीम के दोहे : भाग - 5

रहीम के दोहे :

रहिमन मोम तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक मांहि।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नांहि।।


रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट है जात।
नारायण हू को भयो, बावन आंगुर गात।।


रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार।
चोरी करि होरी रची, भई तनिक में छार।।


समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।


चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह।।

साईं ने कहा है : भाग - 163

साईं ने कहा है, कि.....
"दूसरे के बारे में बुरा ना बोलो, बुरा ना सोचो और बुरा न सुनो।"

Thursday 17 September 2009

काशी साईं आज का विचार : गुरु का महत्व

" जैसे एक नन्हा सा दीपक घनघोर अँधेरा दूर कर प्रकाश फैला देता है, वैसे ही सद्गुरु हमारे अन्तर(मन) में फैले अंधेरे को 'ज्ञान' के प्रकाश से प्रकाशित कर देते हैं।"

रहीम के दोहे : भाग - 4

रहीम के दोहे :-

जो रहीम उत्‍तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्‍यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।


कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।


कदली सीप भुजंग मुख, स्‍वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसो ही फल दीन।।


दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय।।


धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ई कौन है, जगत पिआसो जाय।।


बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस।
महिमा घटि सागर की, रावण बस्‍यो पड़ोस।।


रुठे सुजन मनाइए, जो रुठै सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूटे मुक्‍ताहार।।


समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय।
सदा रहे नहिं एकसो, का रहिम पछिताय।।

साईं ने कहा है : भाग - 162

साईं ने कहा है, कि.......
"चित की सुधि अति आवश्यक है, उसके अभाव में हमारे सभी आध्यात्मिक प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।"

Kashi Sai Image : Part - 10


Wednesday 16 September 2009

रहीम के दोहे : भाग - 3

रहीम के दोहे:-

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥1॥

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥2॥

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥3॥

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥4॥

दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥5॥

रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥6॥

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥7॥

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥8॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥9॥

साईं ने कहा है : भाग - 161

साईं ने कहा है, कि.....
"गरीबी अवल बादशाही, अमीरी से लाख सवाई, गरीबो का अल्लहा भाई।"

Tuesday 15 September 2009

रहीम के दोहे : भाग - 2

रहीम के दोहे:-

जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥1॥

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥2॥

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥3॥

बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥4॥

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥5॥

एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥6॥

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥7॥

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥8॥

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥9॥

साईं ने कहा है : भाग - 160

साईं ने कहा है, कि.....
"जो ईश्वर कृपा से प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रहो और लगन से कार्य करो।"

Monday 14 September 2009

रहीम के दोहे : भाग - 1

रहीम के दोहे:-

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥

खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥

साईं ने कहा है : भाग - 159

साईं ने कहा है, कि......
"गुरु की शरण में आने के पश्चात् ही पापो का नाश होता है।"

Sunday 13 September 2009

साईं ने कहा है : भाग - 158

साईं ने कहा है, कि......
"मैं एक दो बार तुम्हे चेतावनी दूंगा, आगया का पालन ना करने पर अंत में कठोर परिणाम भुगतना पड़ेगा।"

दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन : मलूकदास

दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन।
तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन॥
आदर मान, महत्व, सत, बालापन को नेहु।
यह चारों तबहीं गए जबहिं कहा कछु देहु॥
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।
बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत॥
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास 'मलूका कह गए, सबके दाता राम॥

Saturday 12 September 2009

साईं ने कहा है : भाग - 157

साईं ने कहा है, कि...
"शर्म करो....... ईष्या और शत्रुता की भावना का त्याग कर, संतुष्ट और प्रस्सन रहो।"

हमसे जनि लागै तू माया : मलूकदास

हमसे जनि लागै तू माया।
थोरेसे फिर बहुत होयगी, सुनि पैहैं रघुराया॥१॥
अपनेमें है साहेब हमारा, अजहूँ चेतु दिवानी।
काहु जनके बस परि जैहो, भरत मरहुगी पानी॥२॥
तरह्वै चितै लाज करु जनकी, डारु हाथकी फाँसी।
जनतें तेरो जोर न लहिहै, रच्छपाल अबिनासी॥३॥
कहै मलूका चुप करु ठगनी, औगुन राउ दुराई।
जो जन उबरै रामनाम कहि, तातें कछु न बसाई॥४॥

Friday 11 September 2009

काशी साईं आज का विचार : भाग - 21

There is no greater Sadhana (spiritual exercise) than service. Service is the principle means for acquiring divine grace. Without being a devoted follower, you cannot become a worthy leader. If you are not willing to do work, you cannot attain divinity. Each one has to realize this truth. Service to society is the highest good. It is Truth, Right Conduct, Peace, Love and Non-violence that give happiness. These are the five principles that sustain life. Under no circumstances should these principles be given up. Render service to society with these principles in your mind, and with broad-minded dedication to the well-being of all.
JAI SAI RAM

साईं ने कहा है : भाग - 156

साईं ने कहा है, कि.....
"हमारे कर्म ही सुख-दुःख का कारण होते है, इसलिए जैसी स्थिति हो उसे स्वीकार करो।'

दरद-दिवाने बावरे : मलूकदास

दरद-दिवाने बावरे, अलमस्त फकीरा।
एक अकीदा लै रहे, ऐसे मन धीरा॥१॥
प्रेमी पियाला पीवते, बिदरे सब साथी।
आठ पहर यो झूमते, ज्यों मात हाथी॥२॥
उनकी नजर न आवते, कोइ राजा रंक।
बंधन तोड़े मोहके, फिरते निहसंक॥३॥
साहेब मिल साहेब भये, कछु रही न तमाई।
कहैं मलूक किस घर गये, जहँ पवन न जाई॥४॥

Thursday 10 September 2009

Kashi Sai Image : Part - 9


साईं ने कहा है : भाग - 155

साईं ने कहा है, कि.....
"मुझमें पूर्ण विश्वास रखो, भयमुक्त और शांत रहो।"

कौन मिलावै जोगिया हो : मलूकदास

कौन मिलावै जोगिया हो, जोगिया बिन रह्यो न जाय॥
मैं जो प्यासी पीवकी, रटत फिरौं पिउ पीव।
जो जोगिया नहिं मिलिहै हो, तो तुरत निकासूँ जीव॥१॥
गुरुजी अहेरी मैं हिरनी, गुरु मारैं प्रेमका बान।
जेहि लागै सोई जानई हो, और दरद नहिं जान॥२॥
कहै मलूक सुनु जोगिनी रे,तनहिमें मनहिं समाय।
तेरे प्रेमकी कारने जोगी सहज मिला मोहिं आय॥३॥

महिमा साईं नाम की

महिमा साईं नाम की:-
साईं नाम आधार मनवा, साईं नाम आधार।
साईं नाम आधार मनवा, साईं नाम आधार।
साईं सुमिर ले, चित लगा के, छेड़ के मन के तार,
मनवा, साईं नाम आधार। साईं नाम आधार।
साईं सत्य है, नाम प्रभु का, जाप ले बारम्बार,
मनवा, साईं नाम आधार। साईं नाम आधार।
छाया हो घनघोर अँधेरा, जब तेरे चहू ओर,
साईं नाम की अलख जलाकर करले तू उजियार,
मनवा, साईं नाम आधार। साईं नाम आधार।

Wednesday 9 September 2009

अपनी भूल स्वीकार करना

चेष्टा यह करनी चाहिये कि मतभेद की नौबत ही न आने पाए । अपनी ओर से कोई ऐसी बात मत आने दो जिससे कोई विवाद हो जाए, बल्कि दूसरी ओर से होने वाले विवाद को भी शांतिपूर्वक निबटा देना ही बुद्घिमानी है । अपने द्घारा हुई भूल को तुरंत स्वीकार कर लीजिये । आपको इस स्पष्टवादिता और आदर्श मनोवृत्ति का दूसरों पर अवश्य ही प्रभाव पड़ेगा । यदि आप भूल करके भी उसे स्वीकार नहीं करते तो दूसरों पर उसकी गलत प्रतिक्रिया होगी और क्षमाभाव के बजाय मन में भ्रांत धारणा बनी रहेगी ।

परस्पर विरोध रहने के कारण अनबन चल रही हो, तो उस अनबन को समझौते द्घारा तय कीजिए और आगे के लिये ऐसा ढंग अपनाइए कि समस्या जटिल न होने पाएँ । अनबन का अंत यदि शीघ्र ही नहीं होता, तो वह धीरे-धीरे भीषण रुप धारण कर लेती है और फिर उसका समाधान बहुत कठिन हो जाता है ।

चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...